श्रीधर पंडित..

श्रीधर पंडित..

श्रीधर नामक एक ब्राह्मण, श्री वैष्णो देवी के बहुत बड़े भक्त थे। वह कटरा के पास हंसाली नामक गाँव में रहते थे। एक बार माँ ने उन्हें एक सुन्दर कन्या के रूप में दर्शन दिए, और "भंडारा" करवाने के लिए कहा, सम्पूर्ण रहवासियों सहित भैरवनाथ तांत्रिक को भी निमंत्रित करने के लिए कहा। श्रीधर धनवान नहीं थे, न ही उनमे भोज करवाने की आर्थिक क्षमता थी किन्तु माँ के आदेश को सर माथे पर लेकर उन्होंने गाँव के सभी वासियों को आमंत्रित कर दिया। 

भैरवनाथ तांत्रिक को निमंत्रित करने जब पहुचे तब भैरवनाथ ने इस चेतावनी के साथ निमंत्रण स्वीकार कर लिया कि उन्हें संतुष्ट न कर सकने का परिणाम भयानक होगा। श्रीधर के पास धन तो था नहीं, वे भोज को लेकर बड़े चिंतित थे। तब माँ उनके सामने फिर से प्रकट हुईं और कहा कि वे चिंतित न हों, वे स्वयं सारा प्रबंध करेंगी। और ऐसा ही हुआ भी। श्रीधर की छोटी सी झोपडी में माँ ने व्यक्तियों को बैठाया और भरपेट स्वादिष्ट निरामिष भोजन से संतुष्ट किया।

किन्तु भैरव नाथ संतुष्ट नहीं हुए और कहा कि वे तो तांत्रिक हैं, और निरामिष भोजन उन्हें स्वीकार्य नही। उन्हें तो मांस आदि ही चाहिए। इस पर कन्या ने असहमत होते हुए कहा कि वैष्णव भोज में सिर्फ सात्विक भोजन ही परोसा जाएगा, तामसिक भोजन नहीं। इस पर क्रोधित होकर तांत्रिक ने अपनी चेतावनी याद दिलाते हुए श्रीधर को डराया और उस देवी रूपी कन्या पर हमला किया।

देवी जानती थीं कि भैरवनाथ एक भक्त है, और वे उसका वध नहीं करना थीं। वे वहां से त्रिकूट पर्वत की तरफ चली गयीं गई। भैरंव उनका पीछा करने लगा।

माँ ने उसकी तरफ एक बाण चलाया, जो धरती में धंस गया और वहां से "बाणगंगा" प्रकट हुई। कहते हैं कि बाणगंगा में स्नान करने वाले भक्त के सारे पाप धुल जाते हैं। नदी के किनारे पर माँ की "चरणपादुका" के निशान हैं।

माँ वहां से आगे भी आगे बढीं और अर्धक्वारी के पास "गर्भ गुफा" में छुप गयीं। यहाँ वे नौ महीने तक रहीं। बजरंगबली गुफा के बाहर पहरा देते रहे।

यहाँ से निकल कर माँ और ऊपर को बढीं, और भैरंव के हमले करते रहने से उन्हें महा काली का रूप लेना पडा, और माँ ने भैरंव का वध कर दिया।

सर कट जाने पर कटे हुए सर ने माँ से कहा कि वे जानते थे कि कन्या कौन हैं, और उन्होंने यह सब इसलिए किया, जिससे माँ के हाथों से मृत्यु होने पर उन्हें मोक्ष मिल जाए। किन्तु उन्होंने दुःख प्रकट किया कि माँ के भक्त उन्हें हमेशा इस शैतानी रूप के ही लिए याद करेंगे।

इस पर माँ ने उन्हें वचन दिया कि जो भक्त मेरे दर्शन को आयेंगे, उनके दर्शन तभी सम्पूर्ण माने जायेंगे, जब वे भैरंवनाथ के स्थान पर भी जाकर दर्शन करेंगे। आज भी भक्त वैष्णो माँ के दर्शनों के बाद भैरंवानाथ के दर्शनों को जाते हैं।

फिर माँ पिंडियों के रूप में परिवर्तित होकर तपस्यारत हो गयीं। 


इधर माँ के इंतज़ार में अधीर श्रीधर ने स्वप्न में देखे हुए रास्ते पर उन्हें खोजना शुरू किया, और आखिर पिंडियों तक पहुँच गए। तब से श्रीधर पंडित तत्पश्चात उनके वंशज यहाँ पूजा आराधना करते आ रहे हैं।

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