कविता-हुल्लड़ मुरादाबादी.


कविता.

बहरों को फरियाद सुनाना, अच्छा है पर कभी-कभी.

(हुल्लड़ मुरादाबादी)

बहरों को फरियाद सुनाना, अच्छा है पर कभी-कभी
अंधों को दर्पण दिखलाना, अच्छा है पर कभी-कभी

ऐसा न हो तेरी कोई उंगली गायब हो जाए
नेताओं से हाथ मिलाना, अच्छा है पर कभी-कभी

बीवी को बंदूक सिखाकर तुमने रिस्की काम किया
अपनी लुटिया आप डुबाना, अच्छा है पर कभी-कभी

हाथ देखकर पहलवान का, अपना सर फुड़वा बैठे
पामिस्ट्री में सच बतलाना, अच्छा है पर कभी-कभी

तुम रूहानी शेर पढ़ोगे, पब्लिक सब भाग जाएगी
भैंस के आगे बीन बजाना, अच्छा है पर कभी-कभी

घूंसे लात चले आपस में, संयोजक का सिर फूटा
कवियों को दारू पिलावाना, अच्छा है पर कभी-कभी

जितने चांदी के चम्मच थे, सबके सब गायब पाए
कवियों को मेहमान बनाना, अच्छा है पर कभी-कभी

पच्चीस डॉलर जुर्माने के पीक थूकने में खर्चे
वाशिंगटन में पान चबाना, अच्छा है पर कभी-कभी

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