इस जीवन में ही
स्वर्ग का आनंद लीजिये.
अपने प्रेम रूपी अमृत को चारों ओर छिड़क दीजिए, जिससे यह श्मशान सा भयंकर दिखाई पड़ने वाला जीवन देव-देवताओं की क्रीड़ा भूमि बन जाय। अपने आत्म भाव रूपी पारस को कुरूप अव्यवस्थित लोहा लंगड़ से स्पर्श होने दीजिए, जिससे स्वर्णमयी सुरम्य इन्द्रपुरी बनकर खड़ी हो जाय। यदि आप इसी जीवन में स्वर्ग का आनन्द लूटना चाहते हैं, तो उसकी रचना अपने हाथों कीजिये। यह बिलकुल आसान है और पूर्णतः सम्भव है। यदि आप दूसरों को आत्मीयता की प्रेम पूर्ण दृष्टि से देखने लगें तो निश्चय समझिये यह भूलोक ही आपके लिए स्वर्ग सा आनन्ददायक बन जायगा।
(अखंड ज्योति-7/1943)
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