संत तुकाराम की सहनशीलता.
संत तुकाराम प्रेम करुणा और दया के सागर माने जाते थे। प्राणीमात्र के लिए उनके मन में दयाभाव था। उन्होंने अपना सारा जीवन दीन-दुखियों की सेवा में व्यतीत किया था। वह खुद भूखे रह सकते थे, लेकिन किसी को भूखा नहीं देख सकते थे। इसी वजह से उनको कई बार भूखे रहना पड़ता था। पेटभर भोजन तो दूर कई बार उनको दो-तीन दिन तक खाना नसीब नहीं होता था। उनके घर प्रचूर मात्रा में अनाज आता था, लेकिन वह सभी अतिथियों और जरूरतमंदों की सेवा में समाप्त हो जाता था। इसलिए उनको प्राय: अभाव ग्रस्त हो जाना पड़ता था। एक समय ऐसा भी आया जब उनको भूखों मरने की नौबत आ गई। ऐसे में उनकी पत्नी ने उनसे कहा कि ' जाओ खेत से कुछ गन्ने ही तोड़ लाओ किसी तरह से आज तो गुजारा हो। ' संत तुकाराम पत्नी की बात मानकर गन्ने के खेत में गए और कुछ गन्ने तोड़कर उनका गट्ठर बनाया और घर की ओर चल दिए। रास्ते में कई लोगों ने उनसे गन्ने मांगे, तो संत तुकाराम ने जिसने भी गन्ने मांगे उसको उन्होंने अपने स्वभाववश गन्ने दे दिए। जब वह घर पहुंचे तो उनके पास गन्ने के गट्ठर में से सिर्फ एक गन्ना बचा था। उनकी पत्नी ने उनके हाथ में सिर्फ एक गन्ना देखा तो वह गुस्से में आगबबूला हो गई और समझ गई कि रास्ते में गन्ने को बांटते हुए आए हैं। उन्होने तुरंत संत तुकाराम के हाथों से गन्ना ले लिया और उनकी पिटाई शुरू कर दी। वह संत तुकाराम को जब तक पिटती रही जब तक गन्ना टूट नहीं गया। उसके बाद भी उनकी पत्नी का गुस्सा शांत नहीं हुआ।
संत तुकाराम चुपचाप पत्नी से मार खाते रहे और जब गन्ने के दो टुकड़े हो गए तो वह हंसते हुए बोले कि ' देखो तुम्हारे गुस्से में एक अच्छा काम हो गया। गन्ने के दो टुकड़े हो गए हैं, एक तुम चूस लो और एक मैं चूस लेता हूं। ' अपने क्रोध के दावानल के सामने संत तुकाराम के प्रेम और क्षमा के अथाह सागर को लहराता देख, उनकी पत्नी ने पश्चाताप में सिर पीट लिया। अपने पति के परोपकार, त्याग और क्षमा के गुण को देखकर उसकी आँखों में आंसू आ गए थे।
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