(लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)
श्रीमद्भागवत महापुराण:
प्रथम स्कन्धः पंचम
अध्यायः श्लोक 37-40
का हिन्दी अनुवाद
जब मैंने भगवान की आज्ञा का इस प्रकार पालन किया, तब इस बात को जानकर भगवान श्रीकृष्ण ने मुझे आत्मज्ञान, ऐश्वर्य और अपनी भावरूपा प्रेमाभक्ति का दान किया। व्यास जी! आपका ज्ञान पूर्ण है; आप भगवान की ही कीर्ति का-उनकी प्रेममयी लीला का वर्णन कीजिये। उसी से बड़े-बड़े ज्ञानियों की भी जिज्ञासा पूर्ण होती है। जो लोग दुःखों के द्वारा बार-बार रौंदे जा रहे हैं, उनके दुःख की शान्ति इसी से हो सकती है और कोई उपाय नहीं है।
क्रमश:
साभार krishnakosh.org
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