स्वाभिमान की रक्षा.




स्वाभिमान की रक्षा.

एक बार एक विद्यालय के कुछ छात्रों ने मिलकर पहाड़ी क्षेत्र में पिकनिक पर जाने की योजना बनाई। इसके लिए यह तय किया गया कि सभी बच्चे घर से खाने का कुछ न कुछ सामान लाएंगे। इनमें से एक बालक अपने घर आया और उसने मां को सारी बात बताई।

यह सुनकर मां उदास हो गई। दरअसल घर में कुछ भी ऐसा नहीं था कि वह ले जा सके। न खाने का सामान, न उसे खरीदने के पैसे। कुछ खजूर अवश्य पड़े थे। लेकिन पिकनिक पर खजूर ले जाना बालक को अच्छा नहीं लगा। कुछ देर बाद बालक के पिता घर आए। बालक की मां ने उन्हें पिकनिक के बारे में बताया।


दुर्भाग्य से उस दिन बालक के पिता की जेब भी खाली थी। लेकिन पिता, बालक का दिल नहीं तोड़ना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि उनका बच्चा भी और बच्चों की तरह खुश रहे। उसे किसी भी चीज की कमी न महसूस हो। इसलिए उन्होंने कर्ज लेकर अपने बेटे को पिकनिक पर भेजने का निश्चय किया। वह जब पड़ोसी के घर जाने लगे, तो बालक को सब कुछ समझ में आ गया।


उसने दौड़कर पिता की बांह पकड़ी औ रपूछा, 'आप कहां जा रहे हैं?' पिता ने कहा, 'मैं पड़ोसी के यहां जा रहा हूं ताकि तुम्हारे लिए खाने के कुछ सामान का प्रबंध किया जा सके। घर में तो कुछ है नहीं।' इस पर बालक बोला, 'नहीं पिताजी, किसी से अनावश्यक उधार मांगना ठीक नहीं है। वैसे भी पिकनिक पर जाने की मेरी कोई बहुत इच्छा भी नहीं है।


अगर जाना ही होगा तो खजूर हैं ही। मैं वही लेकर चला जाऊंगा। कर्ज लेकर शान दिखाना, अच्छी बात नहीं।' यह सुनकर पिता के कदम रुक गए। भावुकता वश वह कुछ बोल नहीं सके। मन ही मन वह बेटे को आशीर्वाद दे रहे थे। यह असाधारण बालक आगे चलकर लाला लाजपत राय के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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