एक बार स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण
परमहंस से बिलकुल छोटे बच्चे की तरह जिद्द करते हुए कहा कि आप माँ काली से निवेदन कर अपने
गलकंठ की बीमारी दूर करा लें क्योंकि आपको भोजन करने में काफी दिक्कत हो रही है।
रामकृष्ण ने कहा- ठीक है, मैं माँ काली से कल अपनी बीमारी के ठीक होने का आशीर्वाद मांग लेता हूँ।
अगले दिन वे जब माँ काली की पूजा कर मंदिर से बाहर आए तब विवेकानंद ने विह्वल होकर पूछा कि क्या कहा मां काली ने?
बीमारी ठीक हो जायेगी न?
रामकृष्ण परमहंस ने मुस्कराते हुए कहा- नहीं,
मां ने मुझ डाँट दिया और कहा कि अरे ! तुम मूर्ख कब से हो गये?
अब तुम कब तक अपने इस एकल कंठ से भोजन करोगे?
जब तुम अपने इस कंठ का मोह छोड़ दोगे
मैं तुम्हें संसार के समस्त कंठो में वास दूंगी।
तब तुम समस्त कंठो से भोजन करना।
अब नरेंद्र तुम्हीं बताओ क्या माँ ने सही नहीं कहा है?
क्या मुझे विराट को छोड़कर छुद्र के मोह में पड़ना चाहिए?
रामकृष्ण ने कहा- ठीक है, मैं माँ काली से कल अपनी बीमारी के ठीक होने का आशीर्वाद मांग लेता हूँ।
अगले दिन वे जब माँ काली की पूजा कर मंदिर से बाहर आए तब विवेकानंद ने विह्वल होकर पूछा कि क्या कहा मां काली ने?
बीमारी ठीक हो जायेगी न?
रामकृष्ण परमहंस ने मुस्कराते हुए कहा- नहीं,
मां ने मुझ डाँट दिया और कहा कि अरे ! तुम मूर्ख कब से हो गये?
अब तुम कब तक अपने इस एकल कंठ से भोजन करोगे?
जब तुम अपने इस कंठ का मोह छोड़ दोगे
मैं तुम्हें संसार के समस्त कंठो में वास दूंगी।
तब तुम समस्त कंठो से भोजन करना।
अब नरेंद्र तुम्हीं बताओ क्या माँ ने सही नहीं कहा है?
क्या मुझे विराट को छोड़कर छुद्र के मोह में पड़ना चाहिए?
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