सम्पूर्ण महाभारत- संक्षिप्त कथा.
भाग-4
इन्द्रप्रस्थ की स्थापना.
द्रौपदी स्वयंवर के पहले विदुर को छोड़ कर सभी पाण्ड्वो को मृत समझने लगे और इस कारण धृतराष्ट्र ने शकुनि के कहने पर दुर्योधन को युवराज बना दिया। द्रौपदी स्वयंवर के तत्पश्चात दुर्योधन आदि को पाण्ड्वो के जीवित होने का पता चला। पाण्ड्वो ने कौरवों से अपना राज्य मांगा, परन्तु गृहयुद्ध के संकट से बचने के लिए युधिष्ठर ने कौरवों द्वारा दिए खण्डहर स्वरुप खाण्डव-वन आधे राज्य के रुप मे प्राप्त किया। पाण्डु-कुमार अर्जुन ने श्रीकृष्ण के साथ खाण्डववन को जला दिया और इन्द्र के द्वारा की हुई वृष्टि का अपने बाणों के (छत्राकार) बाँध से निवारण करते हुए, अग्नि को तृप्त किया।। वहा अर्जुन और कृष्णजी ने समस्त देवताओ को युद्ध मे परास्त कर दिया। इसके फलस्वरुप अर्जुन ने अग्निदेव से दिव्य गाण्डीव धनुष और उत्तम रथ प्राप्त किया और कृष्णजी ने सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था। उन्हें युद्ध में भगवान कृष्ण-जैसे सारथि मिले थे तथा उन्होंने आचार्य द्रोण से ब्रह्मास्त्र आदि दिव्य आयुध और कभी नष्ट न होने वाले बाण प्राप्त किये थे। इन्द्र अपने पुत्र अर्जुन की वीरता देखकर अतिप्रसन्न हुए। इन्द्र के कहने पर देव शिल्पि विश्वकर्मा और मय दानव ने मिलकर खाण्डववन को इन्द्रपुरी, जितने भव्य नगर मे निर्मित कर दिया, जिसे इन्द्रप्रस्थ नाम दिया गया।
क्रमश: अगले अंक भाग-5 में.
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