सम्पूर्ण महाभारत- संक्षिप्त कथा. भाग-5


सम्पूर्ण महाभारत- संक्षिप्त कथा.
भाग-5  
पाण्डवों की विश्व विजय और
उनका वनवास.

सभी पाण्डव, सब प्रकार की विद्याओं में प्रवीण थे। पाण्डवों ने सम्पूर्ण दिशाओं पर विजय पाई और युधिष्ठिर राज्य करने लगे। उन्होंने प्रचुर सुवर्णराशि से परिपूर्ण राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान किया। उनका यह वैभव दुर्योधन के लिये असह्य हो उठा। उसने अपने भाई दु:शासन और वैभव प्राप्त सुहृद् कर्ण के कहने से शकुनि को साथ ले, द्यूत-सभा में जूए में प्रवृत्त होकर, युधिष्ठिर को उसके भाइयो, द्रौपदी और उनके राज्य को कपट-द्यूत के द्वारा हँसते-हँसते जीत लिया। दुर्योधन ने कुरु राज्य सभा मे द्रौपदी का बहुत अपमान किया, उसे निर्वस्त्र करने क प्रयास किया। श्रीकृष्ण ने उनकी लाज बाचाई, तत्पश्चात द्रौपदी सभी लोगो को श्राप देने ही वाली थी, परन्तु गांधारी ने आकर ऐसा होने से रोक दिया। साथ ही मे जूए में परास्त होकर युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ वन में चले गये। वहाँ उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार बारह वर्ष व्यतीत किये। वे वन में भी पहले ही की भाँति प्रतिदिन बहुसंख्यक ब्राह्मणों को भोजन कराते थे। (एक दिन उन्होंने) अठासी हजार द्विजों सहित दुर्वासा को (श्रीकृष्ण-कृपा से) परितृप्त किया। वहाँ उनके साथ उनकी पत्नी द्रौपदी और पुरोहित धौम्यजी भी थे।

बारहवाँ वर्ष बीतने पर वे विराट नगर में गये। वहाँ युधिष्ठिर सबसे अपरिचित रहकर 'कंक' नामक ब्राह्मण के रूप में रहने लगे। भीमसेन रसोइया बने थे। अर्जुन ने अपना नाम 'बृहन्नला' रखा था। पाण्डव पत्नी द्रौपदी रनिवास में सैरन्ध्री के रूप में रहने लगी। इसी प्रकार नकुल-सहदेव ने भी अपने नाम बदल लिये थे। भीमसेन ने रात्रिकाल में द्रौपदी का सतीत्व-हरण करने की इच्छा रखने वाले कीचक को मार डाला। तत्पश्चात कौरव विराट की गौओं को हरकर ले जाने लगे, तब उन्हें अर्जुन ने परास्त किया। उस समय कौरवों ने पाण्डवों को पहचान लिया। श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा ने अर्जुन से अभिमन्यु नामक पुत्र को उत्पन्न किया था, उसे राजा विराट ने अपनी कन्या उत्तरा ब्याह दी।

क्रमश: अगले अंक भाग-6 में.

कोई टिप्पणी नहीं: