आत्महत्या पर
हनुमानजी का विचार.
हमारे धर्म में सिर्फ देवताओं की पूजा के बारे में ही नहीं, बल्कि आध्यात्म के बारे में भी काफी कुछ लिखा गया है। जीवन की प्रेरणा और उसके महत्व के बारे में कई प्रसंगों के जरिये बताया गया है। कहा गया है कि आत्महत्या करने से नहीं, जीवित रहने से सफलता मिलती है।
ऐसा ही एक प्रसंग बाल्मीकि रामायण में भी है, जब हनुमानजी ने भी आत्महत्या करने के बारे में सोचा था। मगर, फिर उन्होंने तय किया कि प्राण त्यागने से समस्या का हल नहीं होगा। समस्या को पार करने के लिए युक्ति निकालनी होगी। प्रयास करने होंगे। अवसर तलाशने होंगे।
विनाशे बहवो दोषा जीवन् प्राप्रोति भद्रकम।
तस्मात प्राणान् धरिष्यामि ध्रुवो जीवति संगम:।।
हनुमानजी ने आत्महत्या की बात तब सोची थी, जब वे लंका में सीता माता की खोज कर रहे थे। बहुत प्रयास के बाद भी जब उनको माता का पता नही मिल रहा था। तब उन्होनें विचार किया, कि अगर मैं माता का पता लगाएं बिना वापस गया तो, सुग्रीव-अंगद सहित सभी वानर मेरा वध कर देंगे।
श्रीराम को सीताजी का पता नहीं चला, तो वे उनके वियोग में प्राण त्याग देंगे। उनको देखकर लक्ष्मण और फिर भरत, शत्रुघ्र भी प्राण त्याग देंगे। अयोध्या सूनी हो जायेगी। इतने लोगों के प्राण देने से अच्छा है, मैं लौटकर ही नहीं जांऊ और यही प्राण त्याग कर दूं।
हनुमानजी ने सोचा मैं वापस नहीं जांऊगा, तो सभी वहां पर मेरे वापस आने का इंतजार करेंगे। फिर जब मैं वापस नहीं पहुंचूंगा, तो वे अपने अपने धाम चले जाएंगे। मगर, फिर उनके मन में यह विचार आया कि इस जीवन का नाश कर देने मै बहुत से दोष हैं।
जो पुरुष जीवित रहता है, वह कभी ना कभी अवश्य सफल होता है। अत: मैं प्राण त्याग नही करुंगा। जीवित रहने पर सुख की प्राप्ति अवश्य होती है। यही इस श्लोक का अर्थ है। जीवन संघर्ष है। उसमें सफल होने के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है। संसार का कोई भी मनुष्य हो, एक न एक बार असफलता से सबका सामना जरूर हुआ होगा।
मगर, यह भी सत्य है कि किसी भी असफलता ने स्थायी रूप से सफलता का रास्ता नहीं रोका है। असफलता ही सफलता की कुंजी होती है। घोर निराशा में प्राण त्याग करने वाले को प्रकृति भी स्वीकार नहीं करती है। शास्त्रों के अनुसार उसके लिए किया गया श्राद्ध कर्म भी उसको प्राप्त नहीं होता है।
अत: कैसी भी असफलता हो, आत्महत्या करना, उसका हल नहीं है। यदि हनुमानजी ने भी यही किया होता, तो आज वह जगत में पूजनीय नहीं होते, किंतु उन्होंने आत्महत्या का विचार त्याग दिया।
इसके बाद उन्होंने फिर से पूरी ऊर्जा के साथ सीता माता की खोज का प्रयास किया और आखिर में सफल भी हुए। सोचिए यदि हनुमानजी उस घड़ी में हार मानते हुए आत्महत्या कर लेते और बाद में किसी और की मदद से भगवान राम को माता सीता का पता चल जाता, तब क्या होता।
तब भी राम- रावण युद्ध होता। मगर, जिस तरह से हनुमानजी की मौजूदगी के कारण लक्ष्मण के प्राण संजीवनी बूटी लाकर बचाए गए थे, वह नहीं हो पाता। श्रीराम के कई कार्य सहज ही पूरे नहीं हो पाते और न ही हनुमानजी को देवत्वरूप प्राप्त होता, जैसा वर्तमान में हैं।
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