‘लू’ लगना और उसका उपचार.
(वैद्य श्री
गोपीनाथ जी गुप्ता के एक लेख का आवश्यक अंश)
यह रोग प्रायः दोपहर को हुआ करता हैं, परन्तु बहुत गरम देशों में रात को भी हो जाया करता हैं।
जो लोग गरमी के समय बारीक या काले रंग के कपड़े पहन कर धूप में घूमते हैं, उनको लू लगने का अधिक डर रहता हैं।
लक्षण- धूप में जाने या गरम हवा लगने के साथ ही सर दर्द होता हैं, और सर में चक्कर आता हैं। आंखें लाल हो जाती हैं, और फिर जोर का बुखार चढ़ आता हैं। बुखार बहुत ही तेज होता हैं। कभी-कभी तो 108 डिग्री से भी ऊपर पहुँच जाता हैं। बेचैनी और घबराहट बहुत अधिक होती हैं। प्यास बढ़ जाती हैं। दिल जोर-जोर से धड़कने लगता हैं। साँस लेने में भी कठिनाई होती हैं। पेशाब भी बार बार आता हैं।
यदि शीघ्र ही उचित उपाय नहीं किया जाता या उपाय सफल नहीं होता, तो बेहोशी हो जाती हैं और कभी-कभी तो इसी बेहोशी में कुछ मिनटों में ही प्राण पखेरू उड़ जाते हैं।
अगर गरमी का असर थोड़ा हुआ तो बुखार नहीं आता, बल्कि शरीर की गरमी कम हो जाती है और आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है शरीर ठंडा और चिपचिपा मालूम देता हैं। जी मिचलाता और उल्टी होती हैं। आंखों की पुतलियाँ फैल जाती हैं और रोगी को एकदम कमजोरी आ जाती हैं।
किसी-किसी को खूब पसीना आता हैं, और दम फूल जाता हैं। कभी-कभी इस दशा में भी बेहोशी होकर और दिल की धड़कन बन्द हो मृत्यु हो जाती हैं।
पूर्व उपाय.
1-लू से बचने के लिए गरमी के दिनों में नंगे पैर धूप में न जाना चाहिये। या तो छतरी लेनी चाहिये या अगर साफा बाँधा हो तो उसका छोर कमर तक लटकता रहना चाहिये, जिससे रीढ़ की हड्डी धूप के असर से बची रहे। काले रंग के कपड़े भी न पहनने चाहिए।
2- गरमी के दिनों में माँस, मछली, अंडा, गर्म मसाला, चाय और शराब आदि गरम चीजों से बचना चाहिये। कब्ज न रहने देना चाहिये। रोजाना प्रातःकाल और दोपहर को ठण्डे पानी से नहाना चाहिये। प्रातःकाल छाछ (तक्र मट्ठा) या दही की लस्सी पीना लाभदायक हैं।
जिन्हें कभी एक बार यह रोग हो चुका हो उन्हें बहुत सावधान रहना चाहिये।
लू लगे रोगी को फौरन ठण्डी जगह में आराम से लिटा दें। ठण्डा पानी पिलावें। मिल सके तो बरफ चुसावें। सिर पर ठण्डा पानी बहुत देर तक न डालते रहना चाहिये।
अगर रोगी बेहोश हो जाय तो बार-बार मुँह पर ठण्डे पानी के छींटें दें, और सिर पर 1-2 घड़ा ठण्डा पानी डलवा दें।
यह ध्यान रखना चाहिये कि रोगी को ठण्डे पसीने आते हों, या साँस जोर जोर से आने लगे और नाड़ी कमजोर हो जाये तो पानी न डालकर सिर्फ मुँह पर जोर जोर से ठण्डे पानी के छींटे मारें।
रोगी को तेज बुखार हो तो ऊपर वाला ठण्डा इलाज इतनी देर तक करें कि बुखार हल्का हो जाये,
अगर बुखार बहुत तेज न हो तो सिर्फ नीचे लिखे हुए इलाज से ही आराम हो जाता हैं:-
1- एक सफेद चादर को छाछ (तक्र) में थोड़ी देर औटावें फिर निकाल कर बिलकुल ठण्डा करके उसमें रोगी को लपेट दें।
2- रोगी की नाभि पर काँसी या ताँबे का गहरा कटोरा या थाली रखकर उस में ऊपर से ठण्डे पानी की धार बहुत देर तक छोड़ते रहें।
3- काँसी की थाली रोगी के शरीर पर ऊपर से नीचे तक फिरावें।
4- एक कच्चा- बड़ा सा आम लेकर भूबल (गरम राख) में दबा दें। जब वह नरम हो जाये तो छीलकर गूदा निकाल लें और उस ठण्डे पानी में मिलाकर, मिसरी या खाँड़ मिलाकर रोगी को पिला दें। यदि कब्ज हो तो इसमें दो तोले इमली का गूदा भी मलकर छान लेना चाहिये। या गाय के ताजे दही में ठण्डा पानी मिलाकर लहसी बना कर पिलावें।
5- बेहोशी को दूर करने के लिये कोई खुशबू सुंघाना लाभदायक है।
6- पंखे को ठण्डे पानी में भिगो कर, उससे धीरे धीरे हवा करते रहें। पंखा खस का हो तो बहुत अच्छा हैं।
7- गाय के ताजे और मीठे दही को पानी में मिलाकर लस्सी बनावें और खाँड डाल कर पिलावें। (बरफ से ठण्डा कर लिया जाए तो और भी अच्छा हैं)।
8- शरबत फालसा-पके हुये फालसों को मलकर कपड़े में निचोड़ कर 20 तोले रस निकालें और उसमें 40 तोले खाँड़ मिलाकर, पका कर, शरबत बनावें। इस शरबत को पानी में मिलाकर पीने से गरमी की वमन (उल्टी) प्यास ओर दस्तों में बहुत लाभ होता हैं। लू लगने से होने वाले सब विकारों को दूर करता हैं।
9- पके फालसे को निचोड़ कर निकाला हुआ रस 4 तोले, गुलाब का अर्क 4 तोले और बरफ से ठण्डा करके पिलावें। इससे भी लू के विकार नष्ट होते हैं।
10- सूखा धनिया 3 माशा और काहू के बीज 3 माशे लेकर पानी के साथ पीसकर कपड़े में छान लें और उसमें 4 तोले अर्क गुलाब तथा 2 तोले चन्दन शरबत या अनार अथवा फालसे का शरबत मिलाकर पिलावें। (शरबत न हो तो खाँड़ से मीठा करके पिलावें)।
11-गुलाब के अर्क में सफेद चन्दन घिस कर उसमें रुमाल भिगो कर रोगी के सिर पर रखें और उसे सूखने न दें। इसी पानी को पंखे पर छिड़क कर उससे हवा करें। इससे गरमी और लू की बेहोशी दूर हो जाती हैं।
12- रोगी को केले के हरे पत्तों पर सुलाना लाभदायक हैं।
13- खमीरा गाजुर्वो सादा 1 तोला, चाँदी के वर्क में लपेट कर, या आँवले का मुरब्बा चाँदी के वर्क में लपेट कर, या खमीरा मरबारीदा-पानी या अर्क गाजबाँ के साथ सेवन करने से लू के रोगी को लाभ होता हैं।
पथ्य-बुखार उतरने और रोगी के होश हवाश ठीक होने पर जौ का पानी पिलावें या भुने हुए जौ का सत्तू गुड़ के शरबत में घोलकर पिलावें अथवा गाय के दही की ताजी छाछ दें।
आराम होने के बाद भी लौकी, तुरई आदि ठण्डे शाक देते रहें और कुछ दिनों तक गरम चीजों से परहेज रखें।
(अखंड ज्योति-5/1944)
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