रक्षा-बंधन-
(वैदिक-रीति).
दानवों से युध्द में देवता पराजित होने लगे, तब आचार्य वृहस्पति ने उपाय स्वरूप रक्षा-सूत्र में द्रव्य, मन्त्रों से अभिमंत्रित कर, देवताओं के हाथ में बांध दिया था, जिससे विजय मिली। इसे वैदिक राखी कहते हैं, जो पवित्र, शुभ और कल्याणकारी होती हैं।
वैदिक रक्षा बंधन तैयार करने के लिए ऊनी, सूती या रेशमी-पीले रंग का छोटा सा कपडा लें। उसमे दूर्वा(घास), अक्षत(साबूत चांवल), केसर, चन्दन और सरसों(साबूत दाने), इनको मिलाकर या अन्य विकल्प से कपडे में बांध कर सिलाई कर दें, फिर कलावे को जोड़कर, राखी का आकार दे दें। इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी।
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम भगवान के चित्र पर अर्पित करें। फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे। इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं, वह पुत्र- पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्षभर सुखी रहते हैं।
राखी बांधते समय, यह मन्त्र मन ही मन दुहराना चाहिए.
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां अभिबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल।।
शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बांधते समय यह मन में दुहरायें.
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां रक्षबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल।।
रक्षासूत्र बांधते समय मिठाई या गुड़ से मुंह मीठा कराना ही उत्तम रहता है।
पांच वस्तुओं का महत्त्व.
दूर्वा (घास) - जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेजी से फैलता है, और अनेक गुणित संख्या में उग जाता है। उसी प्रकार रक्षा बंधन पर भी कामना की जाती है कि भाई का वंश और उसमें सदगुणों का विकास तेजी से हो। सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बढ़ती जाए। दूर्वा विघ्नहर्ता गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बांध रहे हैं, उनके जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए।
अक्षत (साबूत-चावल) - हमारी परस्पर एक दूजे के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे।
केसर - केसर की प्रकृति तेज होती है, अर्थात हम जिसे राखी बांध रहे हैं, वह तेजस्वी हो। उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो।
चन्दन - चन्दन की प्रकृति शीतल होती है, और यह सुगंध देता है। उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो। साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे।
सरसों (साबूत दाने) के दाने - सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है, अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें। सरसो के दाने भाई की नजर उतारने और बुरी नजर से भाई को बचाने के लिए भी प्रयोग में लाए जाते हैं।
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