पञ्च तत्व की उत्पत्ति.
1.ब्रह्मा के मन से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी की क्रमशः उत्पत्ति हुई। एक-एक गुणों (तन्मात्रा) की वृद्धि से ये पाँचों पञ्च महाभूत कहे गए. अर्थात,
आकाश में एक गुण=> शब्द
वायु में दो गुण => शब्द + स्पर्श
अग्नि में तीन गुण => शब्द + स्पर्श + रूप
जल में चार गुण => शब्द + स्पर्श + रूप + रस
पृथ्वी में पांच गुण => शब्द + स्पर्श + रूप + रस + गन्ध
2.तत्व प्राण ऊर्जा (योग में प्राण का एक विशिष्ट अर्थ होता है) के विशिष्ट रूप बताते हैं। प्राण इन्ही पाँच तत्वों से मिलकर बना है - ठीक उसी प्रकार जैसे हमारा शरीर और अन्य कई चीज़। माण्डुक्योपनिषद, प्रश्नोपनिषद तथा शिव स्वरोदय मानते हैं कि पंचतत्वों का विकास मन से, मन का प्राण से और प्राण का समाधि (यानि पराचेतना) से हुआ है।
गुण-प्रकार
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पृथ्वी
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जल
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अग्नि
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वायु
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आकाश
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प्रकृति
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भारी
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शीतल
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ऊष्ण
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अनिश्चित
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मिश्रित
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गुण
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वज़न,
एकजुटता
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द्रवता,
संकुचन
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गरम,
प्रसार
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गति
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फैलाव
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वर्ण
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पीला
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सफ़ेद
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लाल
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नीला या
भूरा
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काला
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आकार
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चौकौन
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अर्धचंद्र
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त्रिभुज
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षट्कोण
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बिन्दु
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चक्र
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मूलाधार
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स्वाधिष्ठान
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मणिपूर
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अनाहत
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विशुद्धि
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मंत्र
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लं
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वं
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रं
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यं
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हं
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तन्मात्रा
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गंध
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स्वाद
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दृश्य
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स्पर्श
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शब्द
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शरीर में
कार्य
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त्वचा, रक्त
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शरीर के
सभी द्रव
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क्षुधा, निद्रा,
प्यास
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पेशियों का
संकुचन-
आकुचन
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संवेग, वासना
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शरीर में
स्थिति
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जाँघे
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पैर
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कंधे
|
नाभि
|
मस्तक
|
मानसिक
दशा
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अहंकार
|
बुद्धि
|
मनस,
विवेक
|
चित्त
|
प्रज्ञा
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कोश
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अन्नमय
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प्राणमय
|
मनोमय
|
विज्ञानमय
|
आनंदमय
|
प्राणवायु
|
अपान
|
प्राण
|
समान
|
उदान
|
व्यान
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ग्रह
|
बुध
|
चंद्र, शुक्र
|
सूर्य, मंगल
|
शनि
|
बृहस्पति
|
दिशा
|
पूर्व
|
पश्चिम
|
दक्षिण
|
उत्तर
|
मध्य-ऊर्ध्व
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