मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-22
भाग-21 से लगातार.... गरज की आवाज़ धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही थी और बन्द आँखों से ही सनी महसूस कर रहा था कि अब वहाँ बिजलियां भी चमक रही हैं। और उस चमक में इतनी तेज़ रोशनी पैदा हो रही थी कि बन्द आँखों के बावजूद सनी को उसकी चुभन महसूस हो रही थी। लगता था, उसके सामने सूरज चमक रहा है।
लगभग पन्द्रह मिनट की गरज व चमक के बाद अचानक वहाँ सन्नाटा छा गया। उसने डरते डरते आँखें खोलीं और एक बार फिर उसका मुंह खुला रह गया।
वह ऊंचे ऊंचे पहाड़ तो अपनी जगह से नदारद थे और उनकी जगह एक उतना ही विशालकाय महल नज़र आ रहा था। उस महल की दीवारों पर सफेद व काले रंग के पत्थर जड़े हुए थे। महल में सामने एक विशालकाय दरवाज़ा भी मौजूद था, जो कि फिलहाल बन्द था।
‘अरे वाह। लगता है मैं अपनी मंज़िल पर पहुंच गया। ये महल यकीनन इस तिलिस्म को तोड़ने के बाद आराम करने के लिये बना है।’ ऐसा सोचते हुए सनी महल के दरवाज़े की ओर बढ़ा।
जैसे ही वह दरवाज़े के पास पहुंचा, दरवाज़े के दोनों पट अपने आप खुल गये। एक पल को सनी ठिठका लेकिन फिर अन्दर दाखिल हो गया। उसके अन्दर दाखिल होते ही दरवाज़ा अपने आप बन्द भी हो गया। लेकिन अब सनी के पास पछताने का भी मौका नहीं था।
क्योंकि महल अन्दर से एक विशालकाय हॉल के रूप में था। और उस हॉल के फर्श पर हर तरफ साँप बिच्छू और दूसरे कीड़े मकोड़े रेंग रहे थे। वह चिहुंक कर जल्दी से उछला और छत से जड़े एक फानूस को पकड़ कर लटक गया। हॉल के फर्श पर मौजूद ज़हरीले कीड़ों ने उसकी बू महसूस कर ली थी और अब रेंगते हुए उसी फानूस की तरफ आ रहे थे। हालांकि फानूस काफी ऊंचाई पर था और जब तक वह उससे लटक रहा था, कोई खतरे की बात नहीं थी। लेकिन कब तक? एक वक्त आता जब उसके हाथ थक जाते और वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरता। और ये भी तय था कि गिरते ही साँप बिच्छुओं के खतरनाक ज़हर में उसकी बोटी बोटी गल जाती।
वक्त बीतता जा रहा था। लेकिन सनी के लिये ये वक्त बहुत ही सुस्त रफ्तार से गुज़र रहा था। एक एक सेकंड उसके लिये पहाड़ की तरह साबित हो रहा था। उसके हाथ अब अकड़ने लगे थे, लेकिन फानूस से लटकने के सिवा उसके पास और कोई चारा नहीं था। यह मायावी दुनिया अजीब थी। वह पूरे जंगल को पार करके आया था और उसमें उसे किसी खतरनाक जानवर की झलक तक नहीं दिखी थी। दूसरी तरह यह महल था, जहाँ उसे उम्मीद थी कि खूबसूरत बेड्स पर नर्म गद्दे लगे मिलेंगे, वहाँ ऐसे खतरनाक कीड़े मकोड़े व साँप बिच्छू।
क्रमशः
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