मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-47
भाग-46 से लगातार.... ‘कहीं ऐसा तो नहीं वह फोटोग्राफ न होकर वास्तविकता हो?’ सनी ने सोचा और उस मेज़ की तरफ बढ़ा। मेज़ के पास पहुंचकर उसने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया। उसे यकीन था कि हाथ हवा में लहराकर रह जायेगा। क्योंकि वह इससे पहले कई थ्री डी फिल्में देख चुका था।
लेकिन यह क्या! मेज़ तो वाकई ठोस और वास्तविक थी। उसके हाथों ने मेज़ की सख्ती महसूस कर ली थी। फिर उसने देखा, मेज़ पर रखा सिर भी वास्तविक था। उसने सिर को उठाने की कोशिश की और सिर आसानी से उसके हाथ में आ गया।
‘इसका मतलब मैं वाकई एम-स्पेस के कण्ट्रोल रूम तक पहुंचने में कामयाब हो चुका हूं।’ ये विचार आते ही उसका अंग अंग खुशी से फड़कने लगा। लेकिन आगे कौन सा कदम उठाना है? ये सवाल ज़हन में आते ही वह फिर मायूस हो गया। अभी तक तो अंधी चालें कामयाब साबित हुई थीं। शायद उसपर तक़दीर भी मेहरबान थी। लेकिन आगे क्या हो जाता कुछ नहीं कहा जा सकता था।
‘‘तुम ही बताओ कि मैं आगे क्या करूं?’’ सनी ने हाथ में पकड़े सिर से पूछा। लेकिन सिर खामोश रहा। हालांकि उसकी पलकें झपक रही थीं जिससे मालूम होता था कि वह सिर अभी भी जिंदा है। फिर सनी ने देखा उस सिर की आँखें धड़ की तरफ इशारा कर रही हैं।
कुछ सोचकर सनी वापस धड़ तक पहुंचा और सिर को उस धड़ के ऊपर रख दिया। फिर उसने हैरत से देखा कि अब तक बेजान धड़ एकाएक उठ खड़ा हुआ। लेकिन अब उसे धड़ कहना मुनासिब नहीं था क्योंकि सिर उसके ऊपर पूरी तरह जुड़ चुका था। और अब वह बूढ़ा व्यक्ति पूरी तरह मुकम्मल था।
और अब वह अपना हाथ सनी की तरफ बढ़ा रहा था। सनी डर कर जल्दी से दो तीन कदम पीछे हट गया।
‘‘डरो नहीं मेरे बच्चे। तुमने बहुत बड़ा काम किया है।’’ जिसके लिये मैं अगर जिंदगी भर तुम्हारा शुक्रिया अदा करूं तो भी कम होगा।’’ उस बूढ़े ने मोहब्बत से उसके सिर पर हाथ फेरा।
‘‘अ...आप कौन हैं?’’ सनी ये सवाल पहले भी उस बूढ़े के सिर से पूछ चुका था और उस समय उसका जवाब नहीं मिला था।
‘‘मैं एम-स्पेस का क्रियेटर हूं।’’ बूढ़े की बात सुनकर सनी को एक झटका सा लगा। यानि वह बूढ़ा इस पूरे खतरनाक चक्रव्यूह का रचयिता था। लेकिन फिर वह खुद ही इस चक्रव्यूह में कैसे कैद हो गया? और उसने इस खतरनाक चक्रव्यूह को बनाया ही क्यों? अपने दिमाग में उमड़ते सवालों को सनी ने उस बूढ़े से पूछ लिया।
क्रमशः
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