मायावी गिनतियां. (रोचक कथा) (जीशान जैदी) भाग-40


मायावी गिनतियां.  (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-40
भाग-39 से लगातार....

सनी ने एक तरफ बनी पारदर्शी दीवार से बाहर की ओर देखा। यह कमरा आसमान में किसी हवाई जहाज़ की ही तरह उड़ रहा था। और उस कमरे के बाहर आसमान में तरह तरह की रंग बिरंगी किरणें लहरा रही थीं और एक निहायत खूबसूरत दृश्य देखने को मिल रहा था।

‘‘एक बात बताओ!’’ सनी ने उस राक्षस या फरिश्ते को मुखातिब किया, ‘‘इस कमरे को उड़ाने में तुम जितनी ताकत लगा रहे हो। उससे कम ताकत में तुम अकेले मुझे उड़ाकर ले जा सकते थे। फिर इतना झंझट क्यों मोल लिया?’’

‘‘मैं इस कमरे को उड़ने के लिये केवल एनर्जी सप्लाई कर रहा हूं। जबकि उड़ने के मैकेनिज़्म इसके अन्दर ही बना हुआ है। और सबसे अहम बात ये है कि अगर तुम इस कमरे से बाहर निकलोगे तो आसमान में नाचती ये रंग बिरंगी किरणें तुम्हारे शरीर को नष्ट कर देंगी। क्योंकि ये किरणें काफी घातक हैं।’’

‘‘तो अब हम जा कहाँ रहे हैं?’’

‘‘जहाँ ये कमरा हमें ले जा रहा है।’’ राक्षस ने जवाब तो दे दिया था लेकिन वह जवाब सनी के लिये किसी काम का नहीं था। वह खामोश हो गया।

कमरा अपनी गति से उड़ा जा रहा था या राक्षस उसे उड़ाये ले जा रहा था। लगभग एक घंटे तक उड़ने के बाद कमरा अचानक एक अँधेरी सुंरग में घुस गया। हालांकि सनी के लिये वहाँ पूरी तरह अँधेरा नहीं था क्योंकि राक्षस के जिस्म से फूटती रोशनी में उसे आसपास की चीज़ें नज़र आ रही थीं। थोड़ी देर उस सुरंग में उड़ने के बाद कमरा अचानक रुक गया। और साथ ही उसका शीशे का दरवाज़ा भी खुल गया।

सनी ने देखा, कमरा एक चौकोर प्लेटफार्म पर आकर रुका था। और उस प्लेटफार्म से नीचे जाने के लिये सीढ़ियां भी मौजूद थीं। वह जल्दी जल्दी सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। वहाँ पर एक हल्की सी आवाज़ गूंज रही थी। जो मच्छरों के भनभनाने जैसी थी। इस अँधेरी सुरंग में मच्छरों का होना कोई हैरत की बात नहीं थी। सनी ने सीढ़ी के आखिरी डण्डे से नीचे कदम रखा लेकिन फिर उसे पछताने के मौका भी नहीं मिल सका।

क्योंकि उसे मच्छरों की वह फौज सामने ही नज़र आ गयी थी जो तेज़ी से उसपर हमला करने के लिये आगे बढ़ रही थी। और मच्छर भी कैसे। हर एक का साइज़ टेनिस बॉल से कम नहीं था। उनके सामने लगे तेज़ डंक किसी नुकीले खंजर की तरह नज़र आ रहे थे।

क्रमशः

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