मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-27
भाग-26 से लगातार.... दीवारें पास आ रही थीं और उनके सम्पर्क में आने वाले फानूस गायब हो रहे थे। अब दीवारें उस जगह के काफी पास पहुंच गयी थीं जहाँ पहले हरे फानूस मौजूद थे। लगभग पाँच मिनट बाद दीवारें उस जगह पहुंच गयीं। फिर सनी यह देखकर उछल गया कि उस जगह पहुंचते ही दीवारें भी फानूस ही की तरह हवा में विलीन हो गयीं।
सनी ने देखा बिना दीवारों के सपोर्ट के छत नीचे गिर रही थी। हालांकि उसके गिरने की रफ्तार धीमी थी। उसने छलांग लगायी और छत की सीमा से बाहर आ गया। छत फर्श से टकरायी और फिर ज़मीन में सुराख बनाती हुई नीचे जाने लगी। उसने आगे झांक कर देखा, फर्श अब बहुत तेज़ी से नीचे जा रहा था और ज़मीन में एक गहरी अँधेरी सुरंग बनती जा रही थी। वह पीछे हट गया और चारों तरफ देखने लगा। घना जंगल हर तरफ फैला हुआ था।
धीरे धीरे रात का अँधेरा, उस जंगल को अपनी आगोश में ले रहा था और सनी महसूस कर रहा था कि नयी मुसीबत उसके सामने आने वाली है। क्योंकि हो सकता था अभी तक न दिखने वाले जंगली जानवर अँधेरे में अपने अपने ठिकानों से निकल आये। ऐसे वक्त में उनसे बचना मुश्किल होता। एक हल्की सी आवाज़ वहाँ गूंज रही थी जो शायद फर्श के नीचे जाने की आवाज़ थी। फिर अचानक वह आवाज़ बन्द हो गयी। सुनील कुमार एक बार फिर ज़मीन में बने उस वर्गाकार सूराख में झाँकने लगा। बहुत नीचे जाकर फर्श रुक गया था।
सनी फिर पलट आया। लेकिन फिर उसकी आँखों में चौंकने के लक्षण पैदा हुए। अगर फर्श बहुत नीचे था तो अँधेरे में उसे दिखाई कैसे दिया? उसने दोबारा वहाँ झाँका तो मालूम हुआ कि नीचे हल्की सी रोशनी फैली हुई थी। जो फर्श की साइड से निकल रही थी। और उस साइड में शायद कोई दरवाज़ा मौजूद था, जिसके भीतर से वह रोशनी आ रही थी। उसने और गौर किया तो ये भी समझ में आ गया कि वह उस दरवाज़े तक पहुंच सकता था।
हालांकि गहराई काफी थी, लेकिन नीचे उतरने के लिये उस चौकोर कुएं नुमा सुरंग की दीवारों में छोटे छोटे सूराख बने हुए थे जो कि नीचे तक गये थे। उन सूराखों में हाथ व पैर फंसाकर वह आसानी से नीचे उतर सकता था। लेकिन इस उतरने में रिस्क भी था। वह महल के अन्दर बिना सोचे समझे दाखिल होने का अंजाम देख चुका था। ऐसा न हो कि नीचे मौजूद दरवाज़े के अन्दर कोई नयी मुसीबत उसका इंतिज़ार कर रही हो।
क्रमशः
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