मायावी गिनतियां. (रोचक कथा) (जीशान जैदी) भाग-44


मायावी गिनतियां.  (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-44
भाग-43 से लगातार....

थोड़ी देर बाद जब उसके दिल को कुछ तसल्ली हुई तो उसने अपने सिर को उठाया और चारों तरफ देखने लगा। उसे बहरहाल आगे बढ़ना था और उस कण्ट्रोल रूम को ढूंढना था जो उसे एम-स्पेस से आज़ादी दिला देता। उसने अपने चारों तरफ देखा। लेकिन फिलहाल उसे आगे बढ़ने का कहीं कोई रास्ता नज़र नहीं आया। जो यान उसे लेकर आया था, वह अपने प्लेटफार्म पर टिका हुआ था। लेकिन उसका आगे उड़ना अब नामुमकिन था क्योंकि उसे बढ़ाने के लिये फरिश्ते के रूप में जो एनर्जी थी, वह खत्म हो चुकी थी।

काफी देर सोच विचार करने के बाद उसकी समझ में यही आया कि फिलहाल उस संदूक तक पहुंचने के अलावा उसके पास करने को और कुछ नहीं। हो सकता है, उस बन्द संदूक के अंदर आगे बढ़ने का कोई राज़ छुपा हो। या ज़ीरो जैसा कोई हथियार। लेकिन उस संदूक तक जाना निहायत खतरनाक था। क्योंकि लेसर रूपी किरणें रास्ते में फैली हुई थीं और संदूक तक जाने के लिये उसे उनसे हर हाल में बचना था।

उसने ये खतरा उठाने का निश्चय किया। मरना तो ऐसे भी था। उस बन्द कमरे में बिना खाना व पानी के वह कितनी देर जिंदा रहता। वह उठ खड़ा हुआ और सामने मौजूद लाल किरणों को गौर से देखने लगा। किरणों के बीच के गैप से उसने अंदाज़ा लगाया कि उसका जिस्म उनके बीच से निकल सकता था। हालांकि उसमें काफी खतरा था। ज़रा सी चूक उसे किरणों के सम्पर्क में ला सकती थी और वह मिनटों में स्वाहा हो जाता।

वह धड़कते दिल के साथ आगे बढ़ा। इस समय उसका दिमाग और जिस्म पूरी तरह ऐक्टिव था क्योंकि यह जिंदगी और मौत का मामला था। उसने किरणों वाले कमरे में कदम रखा और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। किरणों से बचते बचाते वह आगे बढ़ रहा था। उसकी एक आँख संदूक पर जमी हुई थी और दूसरी किरणों पर। चींटी की चाल से वह आगे बढ़ रहा था।

आखिर में लगभग आधे घंटे बाद जब वह संदूक तक पहुंचा तो सिर से पैर तक वह पसीने में नहा चुका था। यह आधा घंटा उसे सदियों के बराबर लग रहा था। संदूक तक पहुंने के बाद उसने सुकून की एक गहरी साँस ली और कुछ मिनट आराम करने के बाद वह संदूक का निरीक्षण करने लगा। फिर उसने संदूक का कुंडा पकड़ लिया। कुंडा पकड़ते ही कमरे में बिखरी सारी किरणों गायब हो गयीं। और वहाँ घुप्प अँधेरा छा गया। अँधेरे में ही टटोलकर उसने कुंडे की मदद से संदूक का ढक्कन उठाया और फिर पछताने लगा कि संदूक तक आने के लिये उसने इतना खतरा क्यों मोल लिया।

उस संदूक के अन्दर हल्की रोशनी फैली हुई थी। और उस रोशनी में उसे किसी बच्चे का सिर कटा धड़ साफ दिखाई दे रहा था। धड़ गहरे पीले रंग का था और उस धड़ के अलावा उस संदूक में और कुछ नहीं था।

‘‘क्या इसी सरकटी लाश को देखने के लिये मैंने इतना खतरा मोल लिया?’’ उसने झल्लाकर संदूक बन्द कर दिया। लेकिन संदूक बन्द करते ही कमरे में फिर घना अँधेरे छा गया। अचानक उसके ज़हन में एक नया विचार चमका।

क्रमशः

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