मायावी गिनतियां. (रोचक कथा) (जीशान जैदी) भाग-33


मायावी गिनतियां.  (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-33
भाग-32 से लगातार....

‘‘लेकिन दरवाज़ा कहाँ है? वहाँ पर तो मुझे ठोस संरचना दिखाई दे रही है।’’ सनी ने पूछ ही लिया।

‘‘जिस संरचना को तुम देख रहे हो, वही तो दरवाज़ा है, बाहर जाने का। तुम चलो तो सही।’’ नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा। अचानक सनी के दिमाग़ में ख्याल आया कि जिस तरह यहाँ कदम कदम पर गणितीय पहेलियों के दर्शन हो रहे हैं, और उस संरचना के ऊपर भी एक संख्या लिखी हुई है, तो हो सकता है कि वह संरचना वाकई आगे जाने का दरवाज़ा ही हो और किसी तकनीक से खुलता हो। ऐसा सोचकर उसने आगे कदम बढ़ाया।

अब दोनों लगभग उस संरचना के पास पहुंच चुके थे। अचानक पीछे से कोई चिल्लाया, ‘‘रुक जाओ सनी बेटा।’’ जानी पहचानी आवाज़ सुनकर सनी फौरन पीछे घूम गया।

‘‘माँ, तुम यहाँ।’’ वह चीखा। यकीनन वह उसकी माँ थी, जो हाथ फैलाये हुए उसकी तरफ बढ़ रही थी। उसने भी उससे मिलने के लिये आगे बढ़ना चाहा लेकिन उसी समय नेहा उसके सामने आ गयी।

‘‘कहाँ जा रहे हो सनी। वह तुम्हारी माँ नहीं है। वह केवल एक धोखा है।’’

उसी समय उसकी माँ ने उसे आवाज़ दी, ‘‘सनी, उस डायन के साथ आगे मत जाना वरना हमेशा के लिये कैद हो जाआगे। अगर तुम्हें यहाँ से बाहर निकलना है, तो मेरे साथ चलो।’’

अब तक उसकी माँ उसके काफी पास आ चुकी थी और सनी देख रहा था कि वह वाकई उसकी माँ थी, न कोई धोखा थी और न कोई और उसके मेकअप में था। लेकिन दूसरी तरफ नेहा भी कोई डायन तो मालूम नहीं हो रही थी।

‘‘सनी इस बुढ़िया की बातों में मत आना वरना कभी एम-स्पेस से बाहर नहीं निकल सकोगे। वह एक फरेब है, जो तुम्हारी माँ की शक्ल में है।’’ नेहा ने फिर उसे सावधान किया।

‘‘फरेब तो तू है डायन! जो मेरे भोले भाले बेटे को अपने साथ ले जाकर हमेशा के लिये कैद कर देना चाहती है।’’ उसकी माँ ने दाँत पीसकर कहा, फिर सनी से मुखातिब हुई, ‘‘बेटा मैंने तुझे अपना दूध पिलाया है। क्या तू मुझे नहीं पहचान रहा। अपनी सगी माँ को नहीं पहचान रहा।’’ सनी ने देखा उसकी माँ आँचल से अपने आँसू पोंछ रही थी। वह तड़प गया।

क्रमशः

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