मिथिला की पांच विख्यात महिलाये.


मिथिला की पांच
विख्यात महिलाये.

मिथिला की कुछ स्त्रियों का प्राचीन ग्रंथों और इतिहास की पुस्तकों में अक्सर नाम आता है| इन स्त्रियों ने अपने ज्ञान से न केवल मिथिला अपितु संपूर्ण भारतवर्ष का नाम, इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया है।

1. गार्गी वाचकनवी.

महर्षि वचक्नु की पुत्री वाचकन्वी वेदों और उपनिषदों के उच्च स्तरीय ज्ञान के कारण इतिहास में बहुत प्रसिद्द हैं। गर्ग गोत्र में उत्पन्न होने के कारण उन्हें ‘गार्गी’ नाम से भी जाना जाता है। गार्गी का, राजा जनक के दरबार में महर्षि याज्ञवल्लभ के साथ किया गया शास्त्रार्थ बहुत प्रसिध्द है। विजेता तो याज्ञवल्लभ ही रहे किन्तु हार कर भी जीतकर ‘गार्गी’ का नाम मिथिला में स्त्री शक्ति का प्रतीक बनी।

आजन्म ब्रह्मचारिणी रहीं गार्गी का उल्लेख “अश्वलायन गृह्य सूत्र” और “चंदोग्य उपनिषद्” में भी प्राप्त होता है। ऋगवेद में उनके छंद ब्रह्मवादिनी के नाम से प्रस्तुत हैं। अपनी महान उपलब्धियों के कारण वे जनक के दरबार के नवरत्नों में से एक थीं।

2. विद्योत्तमा

कालिदास को ”महाकवि” बनाने वालीं “विद्योत्तमा” काशी नरेश विक्रमादित्य की पुत्री थी। वह परम सुंदरी और विदुषी नारी थी। बड़े बड़े विद्वानों को हराने वाली विद्योत्तमा को एक सुनियोजित षड़यंत्र के तहत ‘मौन शास्त्रार्थ’ द्वारा कुंठित विद्वानों नें कालीदास जो कि एक महामुर्ख थे, के साथ करा दिया।

कालिदास द्वारा रचित ‘कुमार संभव‘ के अपूर्ण अंशों को विद्योत्तमा ने ही बाद में पूरा किया। संस्कृत का एक और महाकाव्य ‘रघुवंश’ को का भी संपादन विद्योत्तमा द्वारा ही किया गया था।

3. लखिमा देवी. 

लखिमा देवी मिथिला के एक पराक्रमी राजा शिवसिंह रूप नारायण की पत्नी थी। इस परम विदुषी नारी को न्याय और धर्म शास्त्र में पांडित्य प्राप्त था। अपने पति की युद्ध में मृत्य के बाद उन्होंने १५१३ई० तक मिथिला पर शासन किया था। इतिहासकारों मत हैं कि लखिमा रानी के बाद ओईनवार वंश नेतृत्वविहीन हो गया। रानी लखिमा कठिन प्रश्नों का उत्तर जानने हेतु समय- समय पर पंडितों की महासभा आयोजित करती थी।

लखिमा देवी का निर्णय अदभुत और शानदार माना जाता था। उन्होंने ‘पदार्थ चन्द्र’, ‘विचार चन्द्र’ एवं ‘मिथक्षरा वाख्यान’ नामक पुस्तक की रचना की। महाकवि विद्यापति द्वारा रचित लगभग २५० गीतों में उनका वर्णन है।

4. भारती. 

भारतीय धर्म दर्शन को सबसे शिखर पर पहुंचाने वाले आदि शंकराचार्य एक साधारण लेकिन बुद्धिमान औरत से एक बहस में हार रहे थे। वो महिला थीं ‘भारती’ जो मिथिला के महाविद्वान मंडन मिश्र की पत्नी थीं।

विदुषी एवं सुंदर ‘भारती’ ने २२ वर्ष की अवस्था में ही चारों वेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, सांख्य, न्याय मीमांशा, धर्मशास्त्रों का अध्ययन कर लिया था। स्वर से कोमल एवं मधुर भारती की प्रतिभा को देखकर ही विद्वानों ने उसे सरस्वती का अवतार मान लिया था।

5. मैत्रेयी. 

‘मैत्रेयी’, मिथिला के राजा जनक के दरबार में मैत्री नाम के एक मंत्री की पुत्री थीं। मैत्रेयि निश्छल, निःस्वार्थ, साध्वी प्रवृति की स्त्री थीं, जिन्हें अध्यात्मिक ज्ञान की अभिलाषा थी। इसी कारण उन्हें महर्षि याज्ञवल्क्य, जिनकी वह दूसरी पत्नी थीं, का स्नेह प्राप्त था।

महर्षि याज्ञवल्क्य नें मैत्रेयी को ब्रम्हज्ञान का उपदेश दिया था, जिस कारण मैत्रेयी नारी से नारायणी हो गयी और वह श्रेष्ठ नारी के रूप में प्रसिध्दी पाई। मैत्रेयी ने मैत्रेयी उपनिषद लिखा और वृहद्नारायका उपनिषद में हिन्दू धर्मं की एक महवपूर्ण अवधारणा ‘आत्मा’ पर विशेष प्रकाश डाला है।

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