प्रजापति ब्रह्माजी की पूजा
क्यों नहीं होती?
पौराणिक कथानक नैतिक
गतिविधियों के प्रति उत्साह और अनैतिकता के प्रति भय पैदा करने के लिए बनाये गये हैं।
अब इसकी सच्चाई कितनी है,
ये तो खुद हमें
भी नहीं पता।
हिन्दू धर्म से
जुड़े पौराणिक इतिहास पर नजर डालें तो कई ऐसी कहानियां सुनने को मिल जायेंगी, जिनसे
अभी तक आमजन की पहुच नहीं हो पाई हैं। विस्तृत इतिहास होने की वजह से कुछ घटनाएं
छूट भी जाती हैं, तो कुछ नजरअंदाज हो जाती हैं। इन्हीं कहानियों में से एक हैं
सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी का अपनी ही
बेटी के साथ विवाह करने की घटना। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि त्रिदेव के हाथों
में ही इस सृष्टि की बागडोर समाहित है। ब्रह्मा के पास सृष्टि की रचना का दायित्व
है तो विष्णुजी के पास संरक्षण का, वहीं देवों के देव कहे जाने वाले महादेव शिवजी
को विनाश का जिम्मा सौंपा गया है। इसी विनाश के बाद फिर से सृजन होता है, यह हैं
चक्र। ब्रह्माजी का अपनी ही बेटी के साथ विवाह करने की इस घटना का उल्लेख सरस्वती
पुराण में वर्णित है। सरस्वती पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्माजी
ने सरस्वती को जन्म दिया था। सरस्वती याने विद्या की देवी के पिता ब्रह्माजी हैं।
स्वयं ब्रह्माजी
उनके आकर्षण से खुद को बचाकर नहीं रख पाए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाने पर
विचार करने लगे। सरस्वती ने अपने पिता की इस मनोभावना को भांपकर, उनसे बचने के लिए
चारो दिशाओं में छिपने का प्रयत्न किया लेकिन उनका हर प्रयत्न व्यर्थ साबित हुआ।
इसलिए विवश होकर उन्हें अपने पिता के साथ विवाह करना पड़ा। ब्रह्मा और सरस्वती करीब
100
वर्षों तक एक
जंगल में पति-पत्नी की तरह रहे। इन दोनों का एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम रखा गया था,
स्वयंभु मनु।
इसके उलट मत्स्य
पुराण के अनुसार ब्रह्मा के पांच सिर थे। कहा जाता है जब ब्रह्मा ने सृष्टि की
रचना की तो वह इस समस्त ब्रह्मांड में अकेले थे। ऐसे में उन्होंने अपने मुख से
सरस्वती,
सान्ध्य, ब्राह्मी को उत्पन्न किया। ब्रह्मा अपनी ही
बनाई हुई रचना,
सरवस्ती के
प्रति आकर्षित होने लगे और लगातार उन पर अपनी दृष्टि रखते थे। ब्रह्मा की दृष्टि
से बचने के लिए सरस्वती चारो दिशाओं में छिपती रहती थी और पकड़ी भी जाती थी। एक बार
सरस्वती आकाश में जाकर छिप गईं लेकिन ब्रह्मा ने उन्हें आकाश में भी खोज निकाला और
उनसे सृष्टि की रचना में सहयोग करने का निवेदन किया। सरस्वती से विवाह करने के
पश्चात सर्वप्रथम मनु का जन्म हुआ। ब्रह्मा और सरस्वती की यह संतान मनु को पृथ्वी
पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है। इसके अलावा मनु को वेदों, सनातन धर्म और संस्कृत समेत समस्त भाषाओं का
जनक भी कहा जाता है।
प्रजापति
ब्रह्मा का अपनी ही पुत्री के प्रति आकर्षित होना और उसके साथ संभोग करना अन्य सभी
देवताओं की नजरों में अपराध था। सभी ने मिलकर पापों का सर्वनाश करने वाले शिव से
आग्रह किया कि ब्रह्मा ने अपनी पुत्री के लिए यौनाकांक्षाएं रखीं, जोकि एक बड़ा पाप है, ब्रह्मा को उनके किए का फल मिलना ही चाहिए।
क्रोध में आकर शिव ने उनके पांचवें सिर को उनके धड़ से अलग कर दिया था। शिव पुराण
के अनुसार ब्रह्मा के सर्वप्रथम पांच सिर थे। लेकिन जब अपने पांचवें मुख से
उन्होंने सरस्वती जोकि उनकी पुत्री थी, को उनके साथ संभोग करने के लिए कहा तो क्रोध-वश सरस्वती ने उनसे कहा कि
तुम्हारा यह मुंह हमेशा अपवित्र बातें ही करता है जिसकी वजह से आप भी विपरीत ही
सोचते हैं। इसी घटना के बाद एक बार भगवान शिव, अपनी अर्धांगिनी पार्वती को ढूंढ़ते हुए ब्रह्मा के पास पहुंचे तो पांचवें सिर
को छोड़कर उनके अन्य सभी मुखों ने उनका अभिवादन किया, जबकि पांचवें मुख ने अमंगल आवाजें निकालनी शुरू कर दी। इसी कारणवश क्रोध में
आकर शिव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को उनके धड़ से अलग कर दिया।
इसी से मीलती
जुलती एक अन्य कथा ये भी है।
हिंदू
धर्मग्रंथों के अनुसार,
ब्रह्मा ने
स्वयं को समझने के लिए सृष्टि का निर्माण किया था। इस सृष्टि ने स्त्री का रूप
लिया। उनकी यह रचना सतरूपा इतनी सुंदर थी कि वे उसकी सुंदरता से मुग्ध हो गये, सतरूपा जिसका अर्थ है जिसके कई रूप हों।
सतरूपा के अनवरत बदलते रूप को देखकर ब्रह्मा जी अपने द्वारा उत्पन्न सतरूपा के
प्रति आकृष्ट हो गए तथा उन्हें टकटकी बांध कर निहारने लगे। सतरूपा ने ब्रह्मा की
दृष्टि से बचने की हर कोशिश की किंतु असफल रहीं। कहा तो ये भी जाता है कि सतरूपा
में हजारों जानवरों में बदल जाने की शक्ति थी और उन्होंने ब्रह्मा जी से बचने के
लिए ऐसा किया भी,
लेकिन ब्रह्मा
जी ने जानवर रूप में भी उन्हें परेशान करना नहीं छोड़ा। इसके अलावा ब्रह्मा जी की
नज़र से बचने के लिए सतरूपा ऊपर की ओर देखने लगीं, तो ब्रह्मा जी अपना एक सिर ऊपर की ओर विकसित कर दिया जिससे सतरूपा की हर कोशिश
नाकाम हो गई।
ब्रह्मा की यह
अवस्था देवताओं को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने ब्रह्मा को खूब धिक्कारा। क्योंकि एक
पिता अपनी पुत्री सृष्टि के पीछे भाग रहा था। भगवान शिव भी ब्रह्मा जी की इस हरकत
को देख रहे थे। शिव की दृष्टि में सतरूपा ब्रह्मा की पुत्री सदृश थीं, इसीलिए उन्हें यह घोर पाप लगा। इससे क्रुद्ध
होकर शिव जी ने ब्रह्मा का सिर काट डाला ताकि सतरूपा को ब्रह्मा जी की कुदृष्टि से
बचाया जा सके। भगवान शिव ने इसके अतिरिक्त भी ब्रह्मा जी को शाप के रूप में दंड
दिया। इस श्राप के अनुसार,
त्रिदेवों में सम्मिलित
ब्रह्माजी की पूजा-उपासना नहीं होगी। ब्रह्माजी को इस अनैतिकता का दण्ड स्वरूप,
उन्हें अपना पांचवा सिर और पूजा की पात्रता को भी खोना पड़ा।
इसका अर्थ ऐसा
भी हो सकता है कि हम भी दुनिया में कुछ निर्माण करते हैं और विकाश भी करते हैं। माया, भ्रम, पाश तथा आत्म-मुग्धता के कारण अनैतिकता
अपनाने पर सामाजिक मान्यता समाप्त हो जाती हैं अर्थात समाज से हमें वह आदर-सत्कार
मिलना बंद हो जाता हैं, जिसके लिए हम अधिकारी थे।