राजा प्रतापभानु की कथा.


रामचरितमानस के बाल-कांड में  राजा प्रतापभानु की कथा आती हैं तदानुसार कैकेय देश में सत्यकेतु नाम का  राजा था। 

उनके दो पुत्र थे|  बड़े पुत्र का नाम प्रतापभानु और छोटे का अभिमर्दन था।

राजा सत्यकेतु के बाद बड़ा बेटा  प्रतापभानु को राजगद्दी में विराजमान हुआ। 

राजा प्रतापभानु सदाचारी और धर्म-परायण थे| सारे  काम-काज, वेदों और शास्त्रों के अनुसार ही करते थे। वे ब्राह्मणों और संतो का विशेष आदर करते थे। उन्होंने अपने राज्य का विस्तार भी अपने कौशल से कर लिया था|


एक बार राजा प्रतापभानु  शिकार के लिए वन में गए थे|   अचानक उनकी नजर एक जंगली सूअर पर पड़ी और उन्होंने, उसका पीछा किया| जंगली सूअर छिपता-छिपाता भाग निकला और राजा प्रतापभानु भी तीव्र गति से उसका पीछा करने लगे थे इसलिए  उनके साथ आये सहचरों का साथ भी छूट गया| सूअर का  पीछा करते-हुए राजा  प्रतापभानु जंगल के मध्य  पहुँच कर, रास्ता भटक गए और  सूअर भी न जाने कहाँ जाकर छिप गया। 

मध्य रात्रि का समय हो गया था  तभी उन्हें वहां और एक कुटियाँ दिखाई पड़ी।

उस कुटियाँ में एक कपटी मुनि बनकर निवास करता था। पहले  वह  राजा  था जो  युद्ध में राजा  प्रतापभानु के हाथों हार गया था। तब से शर्म के मारे न वह अपने राज्य वापस गया और न ही किसी से संपर्क में था। वह भेष बदल कर  जंगल में  लगा था|

राजा प्रतापभानु ने अपना घोडा एक पेड़ से बांधा और कुटियाँ में उस कपटी मुनि से मिले और उसे नमन किया| कपटी मुनि ने आसन दिया, पानी पिलाया और अनजाना बनते हुए परिचय पूछा| 

 राजा प्रतापभानु ने भी अपने छुपाते हुए बताया कि वे राजा प्रतापभानु के मंत्री हैं जो शिकार में साथ आये राजा प्रतापभानु से विछड़ गये हैं| 

इतना सुनते ही उस कपट मुनि ने कहा-आपने नीति का पालन करते हुए अपने को छुपाया, मुझे अच्छा लगा| नीति यही कहती हैं कि स्थान विशेष को छोड़कर राजा को अपना परिचय स्पष्ट नहीं करना चाहिए-राजन प्रतापभानु|

इतना सुनते हुए ही राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ, क्षमा मांगते हुए, उन्होंने कपटी मुनि से घोर जंगल में निवास और उनके बारे में जानकारी पूछी|

कपटी मुनि ने बताया कि जबसे पृथ्वी बनी है , उनका एक ही जन्म होने के कारण "एक-तनु" उनका नाम हैं और वे यह तपस्या रत हैं उन्होंने आगे कहा कि "हे राजन-मैंने तुम्हारे में चक्रवर्ती के लक्षण देख रहा हूँ|

उस कपटी मुनि ने अपनी बातों से राजा प्रतापभानु का विश्वास जीत लिया।साथ ही चक्रवर्ती की लालसा भी, राजा प्रतापभानु के दिल में जगा दी|

राजा प्रतापभानु उसके मायाजाल में आ गए और चक्रवर्ती सम्राटके पद हेतु उनसे विचार विमर्श करने लगे तब उस कपट मुनि ने राजा प्रतापभानु से कहा कि उसके जीवन में संकट सिर्फ ब्राह्मणों के शाप से ही आ सकता है। इस संसार में ब्राह्मणों के शाप के अतिरिक्त कोई और तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।

इसलिए सभी ब्राह्मणों को निमत्रण देकर उन्हें भोजन करवाओ। इस प्रकार सभी ब्राह्मण तुम्हारे अधीन हो जाएँगे और तुम्हारे जीवन में कभी कोई कष्ट नहीं आएगा। 

 लेकिन ब्राह्मण के लिए भोजन मुझे ही बनाना पड़ेगा। आज से तीन दिन बाद मैं तुम्हारे पास आऊंगा और इस घटना के बारे में बताऊंगा। जिससे तुम मुझे पहचान जाओगे। हमारे इस मिलन का तुम किसी से कोई भेद न खोलना अन्यथा सब व्यर्थ हो जाएगा।अब रात्रि बहुत हो गई हैं-तुम आराम करो| सुबह घोड़े समेत अपनी शक्ति से तुम्हे  राज-महल पंहुचा दूंगा|

थके हुए राजा प्रतापभानु ने इतना सुना और मन मन ही प्रसन्न होकर वही सो गए|

 राजा प्रतापभानु जब सो गये  तब  एक राक्षस आया। ये वही राक्षस था जो जंगली सूअर का भेष धारण कर राजा प्रतापभानु को यहाँ लेकर आया था। उस राक्षस का नाम कालकेतु था। उसके सौ पुत्र और दस भाई थे। जिन्होंने ब्राह्मणों, संतों और देवताओं को दुखी कर दिया था। उनका संहार भी राजा प्रतापभानु ने ही किया था। अब दोनों ने मिल कर राजा प्रतापभानु से बदला के लिए एक चक्रव्यूह रचना कर ली 

सोते हुए राजा को मायावी राक्षस ने घोड़े सहित उसके राज्य में छोड़ आया।

तीन दिन बाद वही राक्षस कालकेतु पुरोहित का भेष बना कर राजा प्रतापभानु के पास गया और जंगल की बात याद करवाई। 

राजा प्रतापभानु ने एक लाख ब्राह्मणों को निमंत्रित भी कर दिया।

राक्षस ने माया से बहुत सारे व्यंजन तैयार किये जो अभक्ष्य मांस से पकाये गये थे। 

जब ब्राह्मण भोजन ग्रहण करने बैठे तभी आकाशवाणी हुई। जिससे सभी ब्राह्मणों को पता चला कि उनके सामने मांस परोसा गया है।

इतना पता चलते ही सभी ब्राह्मणों ने राजा प्रतापभानु को श्राप दिया कि वे कुल समेत  राक्षस हो जाये। 

इधर उस कपटी मुनि को ये खबर मिलते ही उसने आस-पास के सभी राजाओं को एकत्रित किया और राजा प्रतापभानु के राज्य पर आक्रमण कर दिया। फिर जो युद्ध हुआ उसमे सत्यकेतु का सारा वंश समाप्त हो गया।

वही राजा प्रतापभानु बाद में रावण के रूप में जन्मा और उसका भाई अभिमर्दन कुम्भकर्ण के रूप में। राजा प्रतापभानु का मंत्री धर्मरूचि रावण के सौतेले भाई विभीषण के रूप में जन्मा।

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