विदुर-नीति

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विदुर-नीति

मूर्ख कौन कहलाते है?


बिना ज्ञान के ही धमंड में चूर रहने वाले, दरिद्र होकर भी बड़े-बड़े मंसूबे बांधने वाले, और बिना परिश्रम के ही धनवान बनने की इच्छा रखने वालों को, बुद्धिमान लोग मूर्ख समझते हैं।  
जो अपना काम छोड़ कर, दूसरों के कर्त्तव्य पालन में लगा रहता हैं तथा मित्रों के साथ गलत कार्यों में संलग्न रहता है; वह मूर्ख कहलाता है।

जो न चाहनेवाली चीजों की इच्छा करता है
, और चाहने वाली चीजों से मुह फेर लेता है, और अपने से शक्तिशाली लोगों से दुश्मनी मोल लेता है ; वह मूर्ख आत्मा कहलाता है।  
जो शत्रु को मित्र बनाता है, और मित्र से ईर्ष्या - द्वेष करते हुए उसे दुःख पहुंचाता है तथा हमेशा बुरे कर्मों को ही आरम्भ करता है वह मूर्ख विचार वाला कहलाता है।  

हे भरत कुल श्रेष्ट (ध्रितराष्ट्र), जो अपने कार्यों के भेद खोल देता है, और हर चीज में शक करता है, और जिन कार्यों को करने में कम समय लेना चाहिए उन्हें करने में अत्यधिक समय लगाता है; मूर्ख कहलाता है।  
जो पितरों का श्राद्ध नहीं करता है और न ही देवताओं की पूजा- अर्चना करता है, और न ही सज्जनों से मित्रता करता है, वह मूर्ख विचारों वाला कहलाता है।  

जो बिन बुलाये ही किसी सभा / स्थान पर पहुँच जाता है और बिना पूछे ही बोलता रहता है तथा अविश्वसनीय लोगों पर भी विश्वास कर लेता है
, मूर्ख है।  
जो स्वयं गलती करके भी आरोप दूसरों पर मढ़ देता है, और असमर्थ होते हुए भी क्रोधित हो जाता है, मूर्ख कहलाता है।  

जो अपनी ताकतों और क्षमताओं को न पहचानते हुए भी धर्म और लाभ के विपरीत जाकर न पा सकने
  वाली वस्तु की कामना करता है, वह व्यक्ति इस संसार में मूर्ख कहलाता है।  

हे राजन, जो किसी को अकारण ही दंड देता है और अज्ञानियों के प्रति भी श्रद्धा से भरा रहता है तथा कंजूसों और कृपणों का आश्रय लेता है, उसे मूढ़चित्त वाला कहा जाता है।  

 बुद्धिमान या पंडित कौन है?


अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान, उद्योग, दुःख सहने की शक्ति और धर्म में स्थिरता - ये गुण जिस मनुष्य को पुरुषार्थ करने से नहीं रोक पाते वही बुद्धिमान या पंडित कहलाता है।

अच्छे कर्मो को अपनाना और बुरे कर्मों से दूर रहना साथ ही परमात्मा में विश्वास रखना और श्रद्धालु भी होना - ऐसे सद्गुण बुद्धिमान और पंडित होने का लक्षण है।   

क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्दंडता, तथा स्वयं को पूज्य समझना - ये भाव जिस व्यक्ति को पुरुषार्थ के मार्ग /सत्मार्ग से नहीं भटकाते वही बुद्धिमान या पंडित कहलाता है !!

जिस व्यक्ति के कर्त्तव्य, सलाह और पहले से लिए गए निर्णय को केवल काम संपन्न होने पर ही दुसरे लोग जान पाते हैं, वही पंडित कहलाता है

जिस व्यकित के कर्मों में न ही सर्दी और न ही गर्मी, न ही भय और न ही अनुराग, ही संपत्ति और न ही दरिद्रता विघ्न डाल पाते हैं वही पण्डित कहलाता है।


जिस व्यक्ति का निर्णय और बुद्धि धर्मं का अनुशरण करती है और जो भोग विलास ओ त्याग कर पुरुषार्थ को चुनता है वही पण्डित कहलाता है

ज्ञानी और बुद्धिमान पुरुष शक्ति के अनुसार काम करने के इच्छा रखते हैं और उसे पूरा भी करते हैं तथा किसी वस्तु को तुक्ष्य समझ कर उसकी अवहेलना नहीं करते हैं

जो व्यक्ति किसी विषय को शीघ्र समझ लेते हैं, उस विषय के बारे में धैर्य पूर्वक सुनते हैं, और अपने कार्यों को कामना से नहीं बल्कि बुद्धिमानी से संपन्न करते हैं, तथा किसी के बारे में बिना पूछे व्यर्थ की बात नहीं करते हैं वही पण्डित कहलाते हैं 

बुद्धिमान तथा ज्ञानी लोग दुर्लभ वस्तुओं की कामना नहीं रखते, न ही खोयी हुए वस्तु के विषय में शोक करना चाहते हैं तथा विपत्ति की घडी में भी घबराते नहीं हैं

जो व्यक्ति पहले निश्चय करके रूप रेखा बनाकर काम को शुरू करता है तथा काम के बीच में कभी नहीं रुकता और समय को नहीं गँवाता और अपने मन को वश में किये रखता है वही पण्डित कहलाता है

हे भारत कुल भूषण (ध्रितराष्ट्र), ज्ञानी पुरुष हमेशा श्रेष्ठ कर्मों में रूचि रखते हैं, और उन्न्नती के लिए कार्य करते व् प्रयासरत रहते हैं तथा भलाई करनेवालों में अवगुण नहीं निकालते हैं

जो अपना आदर-सम्मान होने पर भी फूला नहीं समाता, और अपमान होने पर भी दुखी व् विचलित नहीं होता तथा गंगाजी के कुण्ड के समान जिसके मन को कोई दुख नहीं होता वह पण्डित कहलाता है

जो व्यक्ति प्रकृति के सभी पदार्थों का वास्तविक ज्ञान रखता है, सब कार्यों के करने का उचित ढंग जाननेवाला है तथा मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ उपायों का जानकार है वही मनुष्य पण्डित कहलाता है।

 जो निर्भीक होकर बात करता है , कई विषयों पर अच्छे से बात कर सकता है, तर्क-वितर्क में कुशल है, प्रतिभाशाली है  और शाश्त्रों में लिखे गए बातों को शीघ्रता से समझ सकता है वही पण्डित कहलाता है
  
जिस व्यक्ति की विद्या या ज्ञान उसके बुद्धि का अनुशरण करती है और बुद्धि उसके ज्ञान का तथा जो भद्र पुरुषों की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता वही पण्डित की पदवी पा सकता है

 किन कार्यों को अकेले करने से बचें!!



जो अपने ऊपर आश्रित व्यक्तियों को बांटे बिना ही उत्तम भोजन करता है और अच्छा वस्त्र पहनता है, उससे बढ़कर क्रूर कौन होगा ?

मनुष्य अकेले पाप करता है और बहुत से लोग उसका फायदा उठाते हैं और आनंद लेते हैंआनंद लेने वाले और फायदा उठाने वाले लोग तो बच कर निकल जाते हैं लेकिन पाप करने वाला ही दोष का भागी होता है और उसका फल अकेले ही भोगता है।  

किसी धर्नुर्धर द्वारा छोड़ा गया तीर हो सकता है किसी एक को भी मारे या ना मारे, लेकिन किसी चालाक द्वारा दी गयी बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर देती है।

एक (यानि बुद्धि) से दो (यानि कर्त्तव्य और अकर्तव्य) का निश्चय करके चार (यानि साम,दाम,दंड और भेद) से तीन (यानी मित्र, शत्रु और उदासीन ) को वश में कीजिये, पांच इन्द्रियों को जीतकर छः(यानि संधि, विग्रह ,यान ,आसन ,द्वैधीभाव, समश्रयरूप) गुणों को जानकार तथा सात (यानि स्त्री, जुआ, शिकार, मद्य, कठोर वचन,दंड की कठोरता और अन्याय से धन का उपार्जन) को छोड़ कर सुखी हो जाईये।


जहर सिर्फ पीने वाले (एक व्यक्ति ) को ही मारता है, शस्त्र भी जिस व्यक्ति पर छोड़ा गया है उसी को मारता है, लेकिन गलत सलाह सिर्फ राजा को ही नहीं बल्कि प्रजा का भी विनाश कर देती है।  

अकेले स्वादिष्ट भोजन न करें, और न ही अकेले किसी बात का निर्णय या निश्चय करें, अकेले किसी रास्ते पर न चलें और जब सभी सगे सम्बन्धी सोये हों तो अकेले जागने से बचें। 

हे राजन! जैसे समुद्र पार करने के लिए नाव ही एक सहारा है उसी प्रकार स्वर्ग पाने के लिए सत्य ही एक मात्र सीढ़ी है किन्तु आप (ध्रितराष्ट्र) इसे नहीं समझ रहे हैं।

क्षमा की महिमा


क्षमाशील व्यक्तियों में केवल एक ही दोष होता है, दुसरे किसी दोष की संभावना ही नहीं होती है और वह दोष यह है की ऐसे व्यक्तियों को लोग असमर्थ समझ लेते हैं !

लेकिन क्षमाशील व्यक्ति का यह दोष नहीं मानना चाहिए; क्यूंकि क्षमा बहुत बड़ा बल है। क्षमा असमर्थ व्यक्तियों का गुण तथा सामर्थ्यवान व्यक्तियों का आभूषण है !

इस जगत में क्षमा वशीकरण मंत्र जैसा है. क्षमा से भला क्या कार्य सिद्ध नहीं होता? जिसके हाथ में शांतिरुपी तलवार है, उसका दुष्ट पुरुष भला क्या बिगाड़ लेंगे।

 घास से इंधन से वंचित जगह पर आग अपने आप ही बुझ जाती है। क्षमाहीन व्यक्ति स्वयं को तथा दूसरों को भी दोष का भागी बना लेता है।

केवल धर्मं ही परम कल्याणकारक है, एक मात्र क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। एक विद्या ही परम संतोष देनेवाली है और एकमात्र अहिंसा ही सुख देनेवाली है।

पृथ्वी किन दो को खा जाती है ?

द्वाविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिव ।
राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम् ॥ ४९॥

बिल में रहने वाले चूहे आदि जीवों को जैसे सांप खा जाता है, उसी प्रकार यह पृथ्वी शत्रु से डटकर मुकाबला न करने वाले राजा और परदेश न जाने वाले ब्राह्मण - इन दोनों को खा जाती है !!

किन कर्मों को करनेवाला विशेष शोभा पाता है ?

द्वे कर्मणी नरः कुर्वन्नस्मिँल्लोके विरोचते ।
अब्रुवन्परुषं किं चिदसतो नार्थयंस्तथा ॥ ५०॥

इन दो कर्मों को करनेवाला मनुष्य इस लोक में विशेष शोभा पाता है : जरा भी कठोर न बोलना और दुष्ट पुरुषों का आदर न करना !!

कौन दो प्रकार के लोग दूसरों पर विश्वास करके चलने वाले होते हैं ?

द्वाविमौ पुरुषव्याघ्र परप्रत्यय कारिणौ ।
स्त्रियः कामित कामिन्यो लोकः पूजित पूजकः ॥ ५१॥

दो प्रकार के लोग दूसरों पर विश्वास करके चलने वाले होते हैं, इनका अपना कोई इरादा या इच्छा शक्ति नहीं होती है :
१. दूसरी स्त्री द्वारा चाहे गए पुरुष की कामना करने वाली स्त्रियाँ,
२. और दूसरों द्वारा पूजे गए मनुष्य की पूजा करने वाले मनुष्य।

दो तीक्ष्ण कांटे!

द्वाविमौ कण्टकौ तीक्ष्णौ शरीरपरिशोषणौ ।
यश्चाधनः कामयते यश्च कुप्यत्यनीश्वरः ॥ ५२॥

ये दो तीक्ष्ण कांटे के सामान शरीर को बेध देते हैं :
१. निर्धन होकर भी बहुमूल्य वस्तुओं की कामना रखना
२. और असमर्थ होकर भी क्रोध करना !

किन दो लोगों को शोभा नहीं प्राप्त होती?

द्वावेव न विराजेते विपरीतेन कर्मणा ।
गृहस्थश्च निरारम्भः कार्यवांश्चैव भिक्षुकः ॥- ॥


ये दो लोग ही अपने विपरीत कर्म के कारण शोभा नहीं पाते :
१.आलसी या अकर्मण्य गृहस्थ
२. प्रपंच में संलग्न सन्यासी।

कौन स्वर्ग से भी ऊपर स्थान पाते हैं ?

द्वाविमौ पुरुषौ राजन्स्वर्गस्य परि तिष्ठतः ।
प्रभुश्च क्षमया युक्तो दरिद्रश्च प्रदानवान् ॥ ५३॥

राजन ! ये दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग से भी ऊपर स्थान पाते हैं :
१. शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला,
२. और निर्धन या गरीब होकर भी दान करने वाला !

धन के दो दुरूपयोग  

न्यायागतस्य द्रव्यस्य बोद्धव्यौ द्वावतिक्रमौ ।
अपात्रे प्रतिपत्तिश्च पात्रे चाप्रतिपादनम् ॥ ५४॥

न्यायपूर्वक कमाए गए धन के दो ही दुरुपयोग हो सकते हैं :
१. अपात्र को दिया जाना,
२. और सत्पात्र को न दिया जाना।   

किन दो को डुबो देना चाहिए ?

द्वावम्भसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढं शिलाम् ।
धनवन्तमदातारं दरिद्रं चातपस्विनम् ॥- ॥

जो धनी होने पर भी दान न करे और दरिद्र/निर्धन  होने पर भी कष्ट सहन न करे सके - इन दो प्रकार के मनुष्यों के गले में बड़ा व् मजबूत पत्थर बांधकर पानी में डुबो देना चाहिए।

किनको उच्च गति प्राप्त होती है ? 

द्वाविमौ पुरुषव्याघ्र सुर्यमण्डलभेदिनौ ।
परिव्राड्योगयुक्तश्च रणे चाभिमुखो हतः ॥- ॥

ये दो प्रकार के पुरुष सूर्यमंडल को भी भेद कर सर्वोच्च गति को प्राप्त करते हैं :
१. योगयुक्त सन्यासी और
२. और युद्ध में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त योद्धा।


किन परिस्थितियों में व्यक्ति को नींद नहीं आती - विदुर नीति
 
महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले की बात हैं, जब हस्तिनापुर के दूत संजय पांडवों का सन्देश लेकर आये थे और अगले दिन सभा में उनका सन्देश सुनाने वाले थे।

उसी रात महाराज धृतराष्ट्र बहुत व्याकुल थे और उन्हें नींद नहीं आ रही थी, तब उन्होंने महामंत्री विदुर को बुलवाया। कुछ समय समय पश्चात महामंत्री विदुर राज महल में महाराज के सामने पहुंच गए।

धृतराष्ट्र ने विदुर से अपने व्याकुल मन की व्यथा बताई और कहा कि जब से संजय पांडवों के यहां से लौटकर आया है, तब से मेरा मन बहुत अशांत है। संजय कल सभा में सभी के सामने क्या कहेगा, यह सोच- सोचकर मन व्यथित हो रहा है और नींद नहीं आ रही है। 


यह सुनकर विदुर ने महाराज से महत्वपूर्ण नीतियों की बात कही और कहा कि जब किसी व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष दोनों के जीवन में ये चार बातें होती हैं, तब उसकी नींद उड़ जाती है और मन अशांत हो जाता है। ये चार बातें कौन-कौन सी हैं, आईये जानते हैं :


पहली बात- विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा कि यदि किसी व्यक्ति के मन में कामभाव जाग गया हो तो उसकी नींदें उड़ जाती है और जब तक उस व्यक्ति की काम भावना तृप्त नहीं हो जाती तब तक वह सो नहीं सकता है। कामभावना व्यक्ति के मन को अशांत कर देती है और कामी व्यक्ति किसी भी कार्य को ठीक से नहीं कर पाता है। यह भावना स्त्री और पुरुष दोनों की नींद उड़ा देती है।

दूसरी बात- जब किसी स्त्री या पुरुष की शत्रुता उससे अधिक बलवान व्यक्ति से हो जाती है तो भी उसकी नींद उड़ जाती है। निर्बल और साधनहीन व्यक्ति हर पल बलवान शत्रु से बचने के उपाय सोचता रहता है क्यूंकि उसे हमेशा यह भय सताता है कि कहीं बलवान शत्रु की वजह से कोई अनहोनी न हो जाए।

तीसरी बात- यदि किसी व्यक्ति का सब कुछ छीन लिया गया हो तो उसकी रातों की नींद उड़ जाती है। ऐसा इंसान न तो चैन से जी पाता है और ना ही सो पाता है। इस परिस्थिति में व्यक्ति हर पल छीनी हुई वस्तुओं को पुन: पाने की योजनाएं बनाता रहता है और जब तक वह अपनी वस्तुएं पुन: पा नहीं लेता है, तब तक उसे नींद नहीं आती है।

चौथी बात- यदि किसी व्यक्ति की प्रवृत्ति चोरी की है या जो चोरी करके ही अपने उदर की पूर्ति करता है, जिसे चोरी करने की आदत पड़ गई है, जो दूसरों का धन चुराने की योजनाएं बनाते रहता है, उसे भी नींद नहीं आती है। चोर हमेशा रात में चोरी करता है और दिन में इस बात से डरता है कि कहीं उसकी चोरी पकड़ी ना जाए। इस वजह से उसकी नींद भी उड़ी रहती है।

ये चारों बातें व्यवहारिक और हर युग में सटीक मालूम पड़ती हैं, उम्मीद करते हैं कि महात्मा विदुर की बातों से आप भी अपनी सीख लेंगे और दूसरों को भी प्रेरित करेंगे।



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