सिंहासन बत्तीसी.
राजा भोज की जिज्ञासा बढ़ी और उन्होंने खुद भेष बदलकर उस चरवाहे को एक जटिल मामले में फैसला करते देखा। उसके फैसले और आत्मविश्वास से भोज इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने उसकी इस अद्वितीय क्षमता के बारे में जानना चाहा। चरवाहे ने अपना नाम चन्द्रभान था बताया साथ में यह भी बताया कि उसमें यह शक्ति टीले पर बैठने के बाद स्वत: चली आती है|
भोज ने सोच विचार कर टीले को खुदवाकर देखने का फैसला किया। जब खुदाई सम्पन्न हुई तो एक राजसिंहासन, मिट्टी में दबा दिखा। यह सिंहासन कारीगरी का अभूतपूर्व रुप प्रस्तुत करता था। इसमें बत्तीस पुतलियाँ लगी थीं तथा कीमती रत्न जड़े हुए थे। जब धूल-मिट्टी की सफ़ाई हुई तो सिंहासन की सुन्दरता देखते बनती थी। उसे उठाकर महल लाया गया तथा शुभ मुहूर्त में राजा का बैठना निश्चित किया हुआ। ज्योंहि राजा ने बैठने का प्रयास किया सारी पुतलियाँ राजा का उपहास करने लगती हैं।
खिलखिलाने का कारण पूछने पर सारी पुतलियाँ एक-एक कर विक्रमादित्य की कहानी सुनकर कहती हैं कि यह सिंहासन राजा विक्रमादित्य का है, इस पर बैठने वाला उसकी तरह योग्य, पराक्रमी, दानवीर तथा विवेकशील होना चाहिए।
ये कथाएँ इतनी लोकप्रिय हैं कि कई संकलनकर्त्ताओं ने इन्हें अपनी-अपनी तरह से प्रस्तुत किया है। सभी संकलनों में पुतलियों के नाम दिए गए हैं, पर हर संकलन में कथाओं के क्रम तथा नामों में और उनके क्रम में भिन्नता पाई जाती है।
1. रत्नमंजरी 2. चित्रलेखा 3. चन्द्रकला 4. कामकंदला 5. लीलावती 6. रविभामा 7. कौमुदी 8. पुष्पवती 9.मधुमालती 10. प्रभावती 11. त्रिलोचना 12. पद्मावती 13. कीर्तिमती 14. सुनयना 15. सुन्दरवती 16. सत्यवती 17. विद्यावती 18. तारावती 19. रुपरेखा 20. ज्ञानवती 21. चन्द्रज्योति 22. अनुरोधवती 23. धर्मवती 24. करुणावती 25. त्रिनेत्री 26. मृगनयनी 27. मलयवती 28. वैदेही 29. मानवती 30. जयलक्ष्मी 31. कौशल्या 32. रानी रुपवती.
उपरोक्त दिए गए 32 नाम उन पुतलियो के हैं, जिन्होंने राज भोज को, राजा विक्रमादित्य की कथा-कहानीयां सुनाई थी| अब क्रम से उन कहानियों की पोस्टिंग होगी, जिसे आप आगामी दिनों में क्रम से पढ़ पाएंगे|
धन्यवाद आपका.
सिंघासन बत्तीसी संस्कृत की रचना है, सिंहासनद्वात्रिंशति तथा "विक्रमचरित" के नाम से उपलब्ध है।
इस लोकप्रिय ग्रन्थ का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद होते रहे हैं और पौराणिक कथाओं की तरह भारतीय समाज में मौखिक परम्परा के रुप में ये कहानियाँ भी रच-बस गई हैं। इनकी रचना, धारा के राजा भोज के समय में नहीं हुई होगी, ऐसा आभास पढने से होता हैं संभवत: इनका रचना काल ११वीं शताब्दी के बाद रहा होगा। इसे "द्वात्रींशत्पुत्तलिका" के नाम से भी जाना जाता है।
32कथाएँ/ कहानियाँ, 32 पुतलियों के मुख से कही गई हैं जो एक सिंहासन में लगी हुई थी। यह सिंहासन राजा भोज को कैसे प्राप्त हुआ, उसके बारे में उल्लेख हैं कि..
एक दिन राजा भोज को ज्ञात हुआ कि साधारण-सा चरवाहा अपनी न्यायप्रियता के लिए विख्यात है, जबकि वह बिल्कुल अनपढ़ है तथा पुश्तैनी रुप से उनके ही राज्य के कुम्हारों की गायें, भैंसे तथा बकरियाँ चराता है। जब राजा भोज ने तहक़ीक़ात कराई तो पता चला कि वह चरवाहा सारे फ़ैसले एक टीले पर चढ़कर करता है।
इस लोकप्रिय ग्रन्थ का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद होते रहे हैं और पौराणिक कथाओं की तरह भारतीय समाज में मौखिक परम्परा के रुप में ये कहानियाँ भी रच-बस गई हैं। इनकी रचना, धारा के राजा भोज के समय में नहीं हुई होगी, ऐसा आभास पढने से होता हैं संभवत: इनका रचना काल ११वीं शताब्दी के बाद रहा होगा। इसे "द्वात्रींशत्पुत्तलिका" के नाम से भी जाना जाता है।
32कथाएँ/ कहानियाँ, 32 पुतलियों के मुख से कही गई हैं जो एक सिंहासन में लगी हुई थी। यह सिंहासन राजा भोज को कैसे प्राप्त हुआ, उसके बारे में उल्लेख हैं कि..
एक दिन राजा भोज को ज्ञात हुआ कि साधारण-सा चरवाहा अपनी न्यायप्रियता के लिए विख्यात है, जबकि वह बिल्कुल अनपढ़ है तथा पुश्तैनी रुप से उनके ही राज्य के कुम्हारों की गायें, भैंसे तथा बकरियाँ चराता है। जब राजा भोज ने तहक़ीक़ात कराई तो पता चला कि वह चरवाहा सारे फ़ैसले एक टीले पर चढ़कर करता है।
राजा भोज की जिज्ञासा बढ़ी और उन्होंने खुद भेष बदलकर उस चरवाहे को एक जटिल मामले में फैसला करते देखा। उसके फैसले और आत्मविश्वास से भोज इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने उसकी इस अद्वितीय क्षमता के बारे में जानना चाहा। चरवाहे ने अपना नाम चन्द्रभान था बताया साथ में यह भी बताया कि उसमें यह शक्ति टीले पर बैठने के बाद स्वत: चली आती है|
भोज ने सोच विचार कर टीले को खुदवाकर देखने का फैसला किया। जब खुदाई सम्पन्न हुई तो एक राजसिंहासन, मिट्टी में दबा दिखा। यह सिंहासन कारीगरी का अभूतपूर्व रुप प्रस्तुत करता था। इसमें बत्तीस पुतलियाँ लगी थीं तथा कीमती रत्न जड़े हुए थे। जब धूल-मिट्टी की सफ़ाई हुई तो सिंहासन की सुन्दरता देखते बनती थी। उसे उठाकर महल लाया गया तथा शुभ मुहूर्त में राजा का बैठना निश्चित किया हुआ। ज्योंहि राजा ने बैठने का प्रयास किया सारी पुतलियाँ राजा का उपहास करने लगती हैं।
खिलखिलाने का कारण पूछने पर सारी पुतलियाँ एक-एक कर विक्रमादित्य की कहानी सुनकर कहती हैं कि यह सिंहासन राजा विक्रमादित्य का है, इस पर बैठने वाला उसकी तरह योग्य, पराक्रमी, दानवीर तथा विवेकशील होना चाहिए।
ये कथाएँ इतनी लोकप्रिय हैं कि कई संकलनकर्त्ताओं ने इन्हें अपनी-अपनी तरह से प्रस्तुत किया है। सभी संकलनों में पुतलियों के नाम दिए गए हैं, पर हर संकलन में कथाओं के क्रम तथा नामों में और उनके क्रम में भिन्नता पाई जाती है।
1. रत्नमंजरी 2. चित्रलेखा 3. चन्द्रकला 4. कामकंदला 5. लीलावती 6. रविभामा 7. कौमुदी 8. पुष्पवती 9.मधुमालती 10. प्रभावती 11. त्रिलोचना 12. पद्मावती 13. कीर्तिमती 14. सुनयना 15. सुन्दरवती 16. सत्यवती 17. विद्यावती 18. तारावती 19. रुपरेखा 20. ज्ञानवती 21. चन्द्रज्योति 22. अनुरोधवती 23. धर्मवती 24. करुणावती 25. त्रिनेत्री 26. मृगनयनी 27. मलयवती 28. वैदेही 29. मानवती 30. जयलक्ष्मी 31. कौशल्या 32. रानी रुपवती.
धन्यवाद आपका.
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