राहुकाल/ यमगण्ड काल.


वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक दिन का एक भाग राहु काल होता है। सूर्योंदय और सूर्यास्त के आधार पर अलग अलग स्थानों पर राहुकाल की अवधि में अंतर होता है। प्रात:अवधि में किसी भी दिन राहू-काल नहीं होता है। सप्ताह के सातों दिन इसका अलग अलग समय होता है। सोमवार को यह दिन के द्वितीय भाग में, शनिवार को तीसरे भाग में, शुक्रवार को चतुर्थ भाग में, बुधवार को पांचवें भाग में, गुरूवार को छठे भाग में, मंगलवार को सातवें भाग में और रविवार के दिन आठवें भाग पर राहु का प्रभाव होता है।

दिन का विभाजन और राहु काल.

वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक दिन का कुछ समय अलग अलग ग्रहों के प्रभाव में रहता है। ग्रहों के प्रभाव से प्रत्येक काल का अपना महत्व होता है। सूर्योदय से सुर्यास्त के कुल समय को 8 भागों में बांटा जाता है। मुख्य रूप से समय के तीन भागों का इनमें विशेष महत्व होता है। समय के ये तीन मुख्य भाग हैं यमगण्ड, राहुकाल और कुलिककाल| इनमें कुलिक काल में शुभ कार्य शुरू किया जा सकता है जबकि राहुकाल और यमगण्डकाल को किसी भी शुभ काम को प्रारंभ करना नहीं करना चाहिए| राहुकाल / यमगण्ड काल लगभग 90 मिनट का होता है|
राहुकाल/ यमगण्ड काल में न करें शुभ कार्य.


राहु नैसर्गिक पाप ग्रह है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु शुभ कार्यो में विघ्न और बाधा डालने वाला ग्रह है अत: राहु काल में किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत नहीं करनी चाहिए। राहुकाल में शुरू किए गए किसी भी शुभ कार्य में हमेशा कोई न कोई विघ्न आता है। अगर इस समय में कोई व्यापार प्रारंभ किया गया हो तो वह घाटे में आकर बंद हो जाता है। इस काल में खरीदा गया कोई भी वाहन, मकान, जेवरात अन्य कोई भी वस्तु शुभ फलकारी नही होती। अत: किसी भी शुभ कार्य को करते समय इस वर्जित कालावधि पर अवश्य विचार कर लेना चाहिए।

आपकी सुविधा के लिए स्टैंडर्ड समयानुसार कालावधि.







1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

आपके द्वारा ज्योतिष ज्ञान बहुत सुस्पस्ट तरीके से फ़िया गया है ।धन्यवाद !