कुंडली में विवाह मेलापक .

कुंडली मिलान में

दोषों का परिहार.

 ज्योतिष  के २ खंड होते हैं. पहला गणित खंड (कुंडली निर्माण इत्यादि ) और दूसरा  फलादेश . गणित खंड के दृष्टिकोण से कम्प्यूटर  से निर्मित्त कुंडली निर्विवाद होती हैं किन्तु फलादेश में ऐसा नहीं हैं. फलादेश के लिए विद्वान ज्योतिषी ही सक्षम हैं. 

कुंडली-मिलान में मांगलिक दोष, गण दोष, नाड़ी दोष, भकूट दोष, मंगल दोष आदि ज्योतिष में महादोष कहे गए हैं.  कुंडली मिलान में कई बार अधिकतम गुण मिलने पर भी वैवाहिक सुख का अभाव रहता है क्योंकि जन्म कुंडली में दाम्पत्य सुख का आंकलन  जो सर्वप्रथम किया जाना चाहिए था, वह नहीं हो पाता हैं. अतएव गुण मिलान  के पूर्व दाम्पत्य सुख की स्तिथि भी कुंडली से अवश्य देख ली जाना चाहिए.

 कुंडली मिलान और भकूट दोष : कारण और निवारण .

कुंडली मिलान में एक से चार नंबर तक के दोषों का विशेष परिहार नहीं है, मुख्य रुप से गण मिलान से परिहार आरंभ होता है..

गण दोष का परिहार.

चंद्र राशि स्वामियों में परस्पर मित्रता या राशि स्वामियों के नवांशपति में भिन्नता होने पर गणदोष नहीं होता है.

ग्रहमैत्री और वर-वधु के नक्षत्रों की नाड़ियों में भिन्नता होने पर भी गणदोष का परिहार हो जाता  है.

यदि वर-वधु की कुंडली में तारा, वश्य, योनि, ग्रहमैत्री और भकूट दोष नहीं हैं तब भी गणदोष नहीं माना जाता है.

भकूट दोष का परिहार.

भकूट मिलान में तीन प्रकार के दोष होते हैं. जैसे षडाष्टक दोष, नव-पंचम दोष और द्वि-द्वार्दश दोष होता है. इन तीनों ही दोषों का परिहार निम्न प्रकार से हो जाता है.

षडाष्टक . (एक दुसरे की राशी छटवे-आठवें )

यदि वर-वधु की मेष/वृश्चिक, वृष/तुला, मिथुन/मकर, कर्क/धनु, सिंह/मीन या कन्या/कुंभ राशि है,  तब यह मित्र षडाष्टक होता है अर्थात इन राशियों के स्वामी ग्रह आपस में मित्र होते हैं. मित्र राशियों का षडाष्टक शुभ माना जाता है.

मेष/कन्या, वृष/धनु, मिथुन/वृश्चिक, कर्क/कुंभ, सिंह/मकर तथा तुला/मीन राशियों का आपस में शत्रु षडाष्टक होता है.  इस शत्रु षडाष्टक का त्याग करना चाहिए.

यदि तारा शुद्धि, राशियों की मित्रता हो, एक ही राशि हो या राशि स्वामी ग्रह समान हो, तब भी षडाष्टक दोष का परिहार हो जाता है

नव पंचम.

जब वर-वधु की चंद्र राशि एक-दूसरे से 5/9 भाव पर स्थित होती है तब नव पंचम दोष माना जाता है.

यदि वर की राशि से कन्या की राशि पांचवें और कन्या की राशि से वर की राशि नवम स्थान पर हो तब यह  नव-पंचम शुभ माना है.

मीन/कर्क, वृश्चिक/कर्क, मिथुन/कुंभ और कन्या/मकर यह चारों नव-पंचम दोषों का त्याग करना चाहिए.

यदि वर-वधु की कुंडली के चंद्र राशिश या नवांशपति परस्पर मित्र राशि में हो तब नव-पंचम का परिहार होता है.

द्वि-द्वार्दश योग .(एक दुसरे से राशी 2-12)

वर की राशि से कन्या की राशि दूसरे स्थान पर हो तो कन्या धन की हानि करने वाली होती है,  लेकिन 12वें स्थान पर हो तब धन लाभ कराने वाली होती है.

द्वि-द्वार्द्श योग में वर-वधु के राशि स्वामी आपस में मित्र हैं तब इस दोष का परिहार हो जाता है.

मतान्तर से सिंह और कन्या राशि द्वि-द्वार्दश होने पर भी इस दोष का परिहार हो जाता है.

नाड़ी दोष . 

वर -कन्या की नाड़ी एक ही होने पर विवाह वर्जनीय है। भले ही उसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से संतान, पति-पत्नी के स्वास्थ्य और जीवन के लिए संकट की आशंका बताई गई है.

वर तथा वधु की एक ही राशि हो लेकिन नक्षत्र भिन्न हो, तब इस दोष का परिहार हो जाता  है.

दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चंद्र राशि भिन्न हो, तब भी इसका परिहार होता है.

दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चरण भिन्न हों तब भी परिहार होता है.

शास्त्रानुसार नाड़ी दोष ब्राह्मणों के लिए,  वर्णदोष क्षत्रियों के लिए,  गण दोष वैश्यों के लिए और योनि दोष अन्य जातियों  के लिए विचारणीय होता है.

ज्योतिष चिन्तामणि के अनुसार रोहिणी, मृ्गशिरा, आर्द्रा, ज्येष्ठा, कृतिका, पुष्य, श्रवण, रेवती तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर नाड़ी दोष नहीं माना जाता है. 

भारतीय ज्योतिष में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं। नौ (9) नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है।

आदि नाड़ी... .अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्व भाद्रपद ।

मध्य नाड़ी....भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और उत्तराभाद्रपद

अन्त्य नाड़ी.... कृतिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती ।

 शास्त्र वचन है कि...

एक ही नाड़ी होने पर गुरु और शिष्य,  मंत्र और साधक, देवता और पूजक  में भी क्रमश: ईर्ष्या,  अरिष्ट और मृत्यु  जैसे कष्टों का भय रहता है l

नाड़ी दोष का उपचार:-

नाड़ी दोष हो तो महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए. इससे दांपत्य जीवन में आ रहे सारे दोष समाप्त हो जाते हैं।

पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राण प्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर वर और कन्या की राशि समान हो तो उनके बीच परस्पर मधुर सम्बन्ध रहता है।

दोनों की राशियां एक दूसरे से चतुर्थ और दशम होने पर वर वधू का जीवन सुखमय होता है।

तृतीय और एकादश राशि होने पर गृहस्थी में धन की कमी नहीं रहती है। 

वर और कन्या की कुण्डली में षष्टम भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव में समान राशि नहीं हो।

वर और कन्या की राशि अथवा लग्न समान होने पर गृहस्थी सुखमय रहती है परंतु राशि अगर समान हो तो नक्षत्र भेद होना चाहिए अगर नक्षत्र भी समान हो तो चरण भेद आवश्यक है ।

अगर ऐसा नही है तो राशि लग्न समान होने पर भी वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है।

 गण....

देव गण- नक्षत्र :-  01, 05, 27, 13, 08, 07, 17, 22, 15. (नक्षत्र क्रम संख्या )

मनुष्य गण-नक्षत्र :- 11, 12,  20,  21, 25, 26, 06, 04. (नक्षत्र क्रम संख्या )

राक्षस गण- नक्षत्र:-  03, 10, 09, 16, 24, 14, 18, 23, 19. (नक्षत्र क्रम संख्या )

स्वगणे परमाप्रीतिर्मध्यमा देवमर्त्ययोः।

मर्त्यराक्षसयोर्मृत्युः कलहो देव रक्षसोः॥ 

संगोत्रीय विवाह  को कराने के लिए कर्म कांडों में एक विधान है, जिसके चलते संगोत्रीय लड़के का दत्तक दान करके विवाह संभव हो सकता है ।

इस विधान में जो माँ-बाप लड़के को गोद लेते हैं। विवाह में उन्हीं का नाम गोत्र आता है।

वैसे तो वर कन्या के राशियों के स्वामी आपस में मित्र हो तो वर्ण दोष, वर्ग दोष, तारा दोष, योनि दोष, गण दोष भी  नष्ट हो जाता है.

वर और कन्या की कुंडली में राशियों के स्वामी एक ही हो या मित्र हो अथवा D-9 नवांश के स्वामी परस्पर मित्र हो या एक ही हो तो सभी कूट-दोषसमाप्त हो जाते हैं.

मांगलिक दोष ..

मांगलिक दोष को कुज दोष या मंगल दोष भी कहा गया है।

विवाह के संदर्भ में यह दोष बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। सुखद विवाह के लिए अमंगलकारी कहे जाने वाले मंगल दोष के विषय में ऐसी मान्यता है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल दोष हो उसे मंगली जीवनसाथी की ही तलाश करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि युवक और युवती दोनों की  कुंडली में मंगल दोष की तीव्रता समान है तो ही दोनों को एक दूसरे से विवाह करना चाहिए। अन्यथा इस दोष की वजह से पति-पत्नी में से किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है।

विवाह के लिए कुंडली मिलान करते समय मंगल को 1, 4, 7, 8 और 12वें भाव पर देखा जाता है। यदि कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो जातक को मंगल दोष लगता है। जबकि सामान्य‍ तौर पर इन सब में से केवल 8वां और 12वां भाव ही खराब माना जाता है।

पहला स्थान अर्थात लग्‍न का मंगल किसी व्‍यक्ति के व्यक्तित्व को और ज्यादा तेज बना देता है, चौथे स्थान का मंगल किसी जातक की पारिवारिक जीवन को मुश्किलों से भर देता है। मंगल यदि 7वें स्‍थान पर हो तो जातक को अपने साथी या सहयोगी के साथ व्यव्हार में कठोर बना देता है। 8वें और 12वें स्‍थान पर यदि मंगल है तो यह शारीरिक क्षमताओं और आयु पर प्रभाव डालता है। यदि इन स्‍थानों पर बैठा मंगल अच्‍छे प्रभाव में हो तो जातक के व्यवहार में मंगल ग्रह के अच्‍छे गुण आएंगे और यदि यह खराब प्रभाव में हैं तो जातक पर खराब गुण आएंगे।

मांगलिक दोष के प्रकार..

उच्च मंगल दोष .... यदि मंगल ग्रह किसी जातक के जन्म कुंडली, लग्न/चंद्र कुंडली में 1, 2, 4, 7, 8वें या 12वें स्थान पर होता है, तो इसे उच्च मांगलिक दोषमाना जाएगा। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

निम्न मंगल दोष...  यदि मंगल ग्रह किसी जातक की जन्म कुंडली, लग्न/चंद्र कुंडली में से किसी एक में भी 1, 2, 4, 7, 8वें या 12वें स्थान पर होता है, तो इसे निम्न मांगलिक दोषया आंशिक मांगलिक दोषमाना जाएगा। कुछ ज्योतिषियों के अनुसार 28 वर्ष की आयु होने के बाद यह दोष अपने आप समाप्त माना जाता है।

मांगलिक व्यक्ति का स्वभाव...

मांगलिक व्‍यक्ति के स्वभाव में आपको कुछ विशेषताएं देखने को मिल सकती हैं, जैसे इस तरह के व्यक्ति दिखने में कठोर निर्णय लेने वाले और बोली में भी कठोर होते हैं। ऐसे लोग लगातार काम करते रहने वाले होते हैं, साथ ही यह किसी भी काम को योजनाबद्ध तरीके से करना पसंद करते हैं। मांगलिक लोग अपने विपरीत लिंग के प्रति कम आकर्षित होते हैं। ये लोग कठोर अनुशासन बनाते हैं और उसका पालन भी करते हैं। मांगलिक व्यक्ति एक बार जिस काम में जुट जाये उसे अंत तक पूरा कर के ही दम लेता है। ये न तो लड़ाई से घबराते हैं और न ही नए अनजाने कामों को हाथ में लेने से। अपनी इन्‍हीं कुछ विशेषताओं की वजह से गैर मांगलिक व्‍यक्ति ज्यादा समय तक मांगलिक व्यक्ति के साथ नहीं रह पाता है।

मंगल दोष से जुड़े मिथक...

मंगल दोष के विषय में ज्यादा जानकारी न होने के कारण कई लोग अनेकों तरह की बातें करते हैं, जिसकी वजह से समाज में मंगल दोष से जुड़े कुछ मिथक भी हैं।

यदि मांगलिक और अमांगलिक की शादी कराई जाती है तो उनका तलाक निश्चित है। यह एक ऐसा मिथक है जो अक्सर सुनने में आता है, जबकि हम सभी जानते हैं कि किसी भी शादी को चलाने की ज़िम्मेदारी लड़का और लड़की की समझदारी और उनके के विचारों के मेल-जोल पर निर्भर करती है।

मंगल दोष से जुड़ा एक मिथक यह भी है कि यदि कोई मांगलिक हैं, तो उसको पहले किसी पेड़ से विवाह करना  होगा । मंगल दोष से छुटकारा पाने के अनेकों उपाय हैं और वह उपाय कुंडली की सही गणना करने के बाद ही बताये जा सकते हैं,  इसीलिए यह जरूरी नहीं कि सभी मांगलिक युवक/युवतियों को पेड़ से ही शादी करनी पड़े।

कुछ लोग यह समझते हैं कि यदि कोई व्यक्ति मंगलवार को पैदा हुआ है तो वह पक्का मांगलिक हैं जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। मंगल दोष का पता कुंडली देखने के बाद ही लगाया जा सकता है। इसका किसी भी दिन पैदा होने से कोई संबंध नहीं होता है।

मंगल दोष का निवारण...

यदि किसी जातक की कुंडली में मांगलिक दोष के लक्षण मिलते हैं तो उन्हें किसी अनुभवी ज्योतिषी से सलाह करके ही मंगल दोष के निवारण की पूजा करनी चाहिए। अंगारेश्वर महादेव, उज्जैन (मध्यप्रदेश) में मंगल दोष की पूजा का विशेष महत्व है। यदि यह पूजा अपूर्ण या कुछ जरूरी पदार्थों के बिना की जाये तो यह जातक पर प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती है। मंगल दोष निवारण के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे नियम बताए गए हैं जिससे शादीशुदा जीवन में मांगलिक दोष न्यून हो जाता है।

वट सावित्री और मंगला गौरी का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला होता है। अगर अनजाने में किसी मांगलिक कन्या का विवाह किसी ऐसे व्यक्ति हो जाता है ,जो दोष रहित हो तो दोष निवारण के लिए इन दोनों व्रत का अनुष्ठान करना  लाभदायी होता है।

यदि किसी युवती की कुंडली में मंगल दोष पाया जाता है, तो अगर वह विवाह से पहले गुप्त रूप से पीपल या घट के वृक्ष से विवाह कर लेती है और उसके बाद मंगल दोष रहित वर से शादी करती है तो  दोष का शमन हो जाता है।

प्राण प्रतिष्ठित किये हुए विष्णु प्रतिमा से विवाह के बाद अगर कन्या किसी से विवाह करती है, तब भी इस दोष का परिहार मान्य होता है।

ऐसा कहा जाता है कि मंगलवार के दिन व्रत रखने और हनुमान जी की सिन्दूर से पूजा करने और उनके सामने सच्चे मन से हनुमान चालीसा का पाठ करने से मांगलिक दोष शांत होता है।

कार्तिकेय जी की पूजा करने से भी इस दोष से छुटकारा मिलता है।

लाल रंग के वस्त्र में मसूर दाल, रक्त पुष्प, रक्त चंदन, मिष्टान और द्रव्य को अच्छी तरह लपेट लें और उसे नदी में प्रवाहित करने दे। ऐसा करने से मांगलिक दोष के लक्षण खत्म हो जाते हैं।गर्म और ताजा भोजन मंगल मजबूत करता है साथ ही इससे आपकी मनोदशा और पाचन क्रिया भी सही रहती है, इसीलिए अपने खान-पान की आदतों में बदलाव करें। मंगल दोष से निबटने का सबसे आसान उपाय है, हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना करना। यह मंगल दोष को खत्म करने में सहायक होता है।कई लोग मंगल दोष के निवारण के लिए मूँगा भी धारण करते हैं। रत्न जातक की कुंडली में मंगल के प्रभाव को देखते हुए ज्योतिषियों के परामर्श अनुसार पहना जाता है।

कुण्डली में दोष विचार...

विवाहके लिए कुण्डली मिलान करते समय दोषों का भी विचार करना चाहिए।

कन्या की कुण्डली में वैधव्य योग , व्यभिचार योग, नि:संतान योग, मृत्यु योग एवं दारिद्र योग हो तो ज्योतिष की दृष्टि से सुखी वैवाहिक जीवन के लिये यह शुभ नहीं होता है।

इसी प्रकार वर की कुण्डली में अल्पायु योग, नपुंसक योग, व्यभिचार योग, पागलपन योग एवं पत्नी नाश योग ..रहने पर गृहस्थ जीवन में सुख का अभाव होता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कन्या की कुण्डली में विष कन्या योग होने पर जीवन में सुख का अभाव रहता है. पति पत्नी के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती है।

हालाँकि कई स्थितियों में कुण्डली में यह दोष प्रभावशाली नहीं होता है अत: जन्म कुण्डली के अलावा नवमांश और चन्द्र कुण्डली से भी इसका विचार करके विवाह किया जा सकता है |



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