आत्मचिंतन के
क्षण.
विचार मनुष्य जीवन के बनाने अथवा बिगाड़ने में बहुत बड़ा योगदान किया करते हैं। मानव जीवन और उसकी क्रियाओं पर विचारों का आधिपत्य रहने से उन्हीं के अनुसार जीवन का निर्माण होता है। असद्विचार रखकर यदि कोई चाहे कि वह अपने जीवन को आत्मोन्नति की ओर ले जाएगा, तो वह अपने इस मंतव्य में कदापि सफल नहीं हो सकता। मानव जीवन का संचालन विचारों द्वारा ही होता है। बुरे विचार, उसे पतन की ओर ही ले जाएँगे। यह एक ध्रुव सत्य है। इसमें किसी प्रकार भी अपवाद का समावेश नहीं किया जा सकता।
स्वार्थ वृत्ति एक जहरीले साँप की तरह होती है। यह जब अपना फन फैलाती है, तो शत्रु-मित्र का विचार किए बिना समान रूप से सबको डस लेती है। एक स्वार्थ वृत्ति से ही मनुष्य में न जाने और कितनी दूषित वृत्तियाँ आ जाती हैं। ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ और मोह आदि के अनर्थकारी विकार, एक स्वार्थ की ही संतति समझनी चाहिए। लौकिक और पारलौकिक, भौतिक तथा आध्यात्मिक, वैयक्तिक तथा सामाजिक किसी भी कल्याण के लिए मनुष्य की स्वार्थ वृत्ति बड़ी भयानक पिशाचिनी है। अपने प्रभाव में लेकर यह मनुष्य को अपने अनुरूप पिशाच ही बना लेती है।
विचारों का परिष्कार एवं प्रसार करके आप मनुष्य से महामनुष्य, दिव्य मनुष्य और यहाँ तक ईश्वरत्त्व तक प्राप्त कर सकते हैं। इस उपलब्धि में आड़े आने के लिए कोई अवरोध संसार में नहीं। यदि कोई अवरोध हो सकता है, तो वह स्वयं का आलस्य, प्रमाद, असंमय अथवा आत्म अवज्ञा का भाव। इस अनंत शक्ति का द्वार सबके लिए समान रूप से खुला है, और यह परमार्थ का पुण्य पथ सबके लिए प्रशस्त है। अब कोई उस पर चले या न चले, यह उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर है।
आशा, विश्वास और परिवर्तन के अटल विधान में आस्था रखने के साथ समय रूपी महान् चिकित्सक में विश्वास रखिए। समय बड़ा बलवान् और उपचारक होता है। वह धैर्य रखने पर मनुष्य के बड़े-बड़े संकटों को ऐसे टाल देता है, जैसे वह आये ही न थे। संकट तथा दुःख देखकर भयभीत होना कापुरुषता है। आप ईश्वर के अंश हैं-आनंद स्वरूप हैं। आपको तो धैर्य, साहस, आत्म-विश्वास और पुरुषार्थ के आधार पर संकट और विपत्तियों की अवहेलना करते हुए सिंह पुरुषों की तरह ही जीवन व्यतीत करना चाहिए।
स्वार्थ वृत्ति एक जहरीले साँप की तरह होती है। यह जब अपना फन फैलाती है, तो शत्रु-मित्र का विचार किए बिना समान रूप से सबको डस लेती है। एक स्वार्थ वृत्ति से ही मनुष्य में न जाने और कितनी दूषित वृत्तियाँ आ जाती हैं। ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ और मोह आदि के अनर्थकारी विकार, एक स्वार्थ की ही संतति समझनी चाहिए। लौकिक और पारलौकिक, भौतिक तथा आध्यात्मिक, वैयक्तिक तथा सामाजिक किसी भी कल्याण के लिए मनुष्य की स्वार्थ वृत्ति बड़ी भयानक पिशाचिनी है। अपने प्रभाव में लेकर यह मनुष्य को अपने अनुरूप पिशाच ही बना लेती है।
विचारों का परिष्कार एवं प्रसार करके आप मनुष्य से महामनुष्य, दिव्य मनुष्य और यहाँ तक ईश्वरत्त्व तक प्राप्त कर सकते हैं। इस उपलब्धि में आड़े आने के लिए कोई अवरोध संसार में नहीं। यदि कोई अवरोध हो सकता है, तो वह स्वयं का आलस्य, प्रमाद, असंमय अथवा आत्म अवज्ञा का भाव। इस अनंत शक्ति का द्वार सबके लिए समान रूप से खुला है, और यह परमार्थ का पुण्य पथ सबके लिए प्रशस्त है। अब कोई उस पर चले या न चले, यह उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर है।
आशा, विश्वास और परिवर्तन के अटल विधान में आस्था रखने के साथ समय रूपी महान् चिकित्सक में विश्वास रखिए। समय बड़ा बलवान् और उपचारक होता है। वह धैर्य रखने पर मनुष्य के बड़े-बड़े संकटों को ऐसे टाल देता है, जैसे वह आये ही न थे। संकट तथा दुःख देखकर भयभीत होना कापुरुषता है। आप ईश्वर के अंश हैं-आनंद स्वरूप हैं। आपको तो धैर्य, साहस, आत्म-विश्वास और पुरुषार्थ के आधार पर संकट और विपत्तियों की अवहेलना करते हुए सिंह पुरुषों की तरह ही जीवन व्यतीत करना चाहिए।
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