पूजा में परिक्रमा.


पूजा में परिक्रमा.

मंदिर में या घर में पूजा-पाठ के पश्चात भगवान का ध्यान करते हुए परिक्रमा जरूर करनी चाहिए। परिक्रमा करना किसी भी देवी-देवता की पूजा का महत्वपूर्ण अंग है। परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य मिलता है। परिक्रमा से जुड़ी ये बातें हमेशा ध्यान रखनी चाहिए..

परिक्रमा के नियम.

प्रतिमा और मंदिर की परिक्रमा अपने दाहिने हाथ की ओर से शुरू करनी चाहिए। जिस दिशा में घड़ी के कांटे घूमते हैं, उसी प्रकार मंदिर में परिक्रमा करें।

मंदिर में स्थापित मूर्तियों के आसपास सकारात्मक ऊर्जा रहती है, जो कि उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती रहती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर इस सकारात्मक ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, जो कि अशुभ माना गया है। दाहिने का अर्थ दक्षिण भी होता है, इसी वजह से परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है।

परिक्रमा करते समय ये मंत्र बोलें.

यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणा पदे-पदे।।

इस मंत्र का अर्थ यह है कि मेरे द्वारा इस जन्म में और पूर्वजन्मों में जाने-अनजाने में किए गए सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाएं। परमपिता परमेश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें।

किस देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए.

सूर्य देव की सात, श्रीगणेश की तीन, श्री विष्णु और उनके अवतारों की चार, श्री दुर्गा की एक, शिवलिंग की आधी, हनुमानजी की तीन प्रदक्षिणा करें। शिव की मात्र आधी ही प्रदक्षिणा की जाती है। इस संबंध में मान्यता है कि जलाधारी का उल्लंघन नहीं किया जाता है। जलाधारी तक पंहुचकर परिक्रमा को पूर्ण मान लिया जाता है।

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