प्रेम का अमरत्व और
उसकी व्यापकता.
कोई व्यक्ति जीवन भर प्राइमरी पाठशाला में ही पढ़ते रहने की जिद करे और अगले बड़े स्कूल में जाने के लिए तैयार न हो तो "उसे बाल बुद्धि ही कहा जाएगा।" "प्रेम" का प्रशिक्षण घर-परिवार में हो या किसी वस्तु अथवा व्यक्ति से प्रारम्भ हो, उसकी स्वाभाविकता समझ में आती है, पर जब कोई उतने तक ही सीमाबद्ध होकर रह जाएगा, "आगे न बढ़ेगा तो रुके हुए पानी की तरह सड़न पैदा हुए बिना न रहेगी।'
जो "प्यार" सीमा बद्ध होकर रह जाता है, उसे "मोह" कहते हैं, "मोह" में पक्षपात जुड़ जाता है, औचित्य का ध्यान नहीं रहता। प्रिय पात्र की त्रुटियों का परिमार्जन करने की इच्छा नहीं होती वरन "उन्हें भी प्रिय मानकर समर्थन किया जाने लगता है।" इससे "प्रेम" की महत्ता ही नष्ट हो जाती है।
"प्रेम" गंगाजल है, जिसे जहाँ छिड़का जाए, वहीं पवित्रता पैदा करे," पर यदि वह गंदे नाले में गिरकर अपनी पवित्रता खो दे तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।
"प्रेम" लगाव का पात्र नहीं है और न पक्षपात के अथवा हर प्रकार के समर्थन-सहयोग का। "उसमें आदर्शो की अविच्छिन्नता जुड़ी रहती है।" "आदर्श विहीन प्यार को "मोह" कहेंगे।" "मोह" अपने प्रिय पात्र के अनुचित कार्यों का भी समर्थन करने लगता है, तब उसकी ऊँचा उठने की क्षमता नष्ट हो जाती है "मोह" को "प्रेम" की विकृति ही कह सकते हैं," इसलिए उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती है।
(अखण्ड ज्योति जनवरी 1972)
जो "प्यार" सीमा बद्ध होकर रह जाता है, उसे "मोह" कहते हैं, "मोह" में पक्षपात जुड़ जाता है, औचित्य का ध्यान नहीं रहता। प्रिय पात्र की त्रुटियों का परिमार्जन करने की इच्छा नहीं होती वरन "उन्हें भी प्रिय मानकर समर्थन किया जाने लगता है।" इससे "प्रेम" की महत्ता ही नष्ट हो जाती है।
"प्रेम" गंगाजल है, जिसे जहाँ छिड़का जाए, वहीं पवित्रता पैदा करे," पर यदि वह गंदे नाले में गिरकर अपनी पवित्रता खो दे तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।
"प्रेम" लगाव का पात्र नहीं है और न पक्षपात के अथवा हर प्रकार के समर्थन-सहयोग का। "उसमें आदर्शो की अविच्छिन्नता जुड़ी रहती है।" "आदर्श विहीन प्यार को "मोह" कहेंगे।" "मोह" अपने प्रिय पात्र के अनुचित कार्यों का भी समर्थन करने लगता है, तब उसकी ऊँचा उठने की क्षमता नष्ट हो जाती है "मोह" को "प्रेम" की विकृति ही कह सकते हैं," इसलिए उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती है।
(अखण्ड ज्योति जनवरी 1972)
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