आत्मचिंतन के क्षण.
👉 आज हमारे समाज में काम का फल जल्दी से जल्दी पाने की प्रवृत्ति हो गई है। लोग खेत को बिना जोते ही-बिना बोए या सींचे ही शान्ति और सफलता रूपी फसल काटने को तैयार बैठे हैं। जब कारण ही नहीं, तो कार्य कैसे हो? और जब कार्य नहीं, तो उसका फल कैसे हो सकता है? शून्य से कुछ भी पाने की आशा नहीं की जा सकती है। हमारा मन एक उपजाऊ खेत है, जिससे जो वस्तु चाहो सीधे रास्ते से पैदा कर सकते हो। उसका उचित चिंतन कीजिए। जैसा बोयेंगे-वैसा ही काटेंगे।
👉 आत्मोन्नति का अर्थ है-पशुत्व से मनुष्यत्व की ओर आना। पशुत्व क्या है- मनोविकारों के ऊपर तनिक भी शासन न कर पाना, जब जैसा मनोविकार आया, उसे ज्यों का त्यों प्रकट कर दिया, काम क्षुधा, भूख, प्यास आदि वासनाएँ जैसे ही उत्पन्न हुईं कि तुरन्त उनकी पूर्ति कर ली गई, यह पशुत्व की स्थिति है। जब इन वासनाओं पर संयम आना प्रारंभ होता है और मानवता के उच्चतम गुण-प्रेम, सहानुभूति, करुणा, दया, सहायता, संगठन, सहयोग, समष्टि के लिए व्यक्ति में त्याग इत्यादि भावनाओं का उदय होता है, तो मनुष्य मनुष्यत्व के स्तर पर निवास करता है।
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