श्रीमद्भागवत महापुराण: चतुर्थ स्कन्ध: त्रयोविंश अध्यायः श्लोक 29-39 का हिन्दी अनुवाद


 (लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)
श्रीमद्भागवत महापुराण:
चतुर्थ स्कन्ध: त्रयोविंश अध्यायः श्लोक 29-39 का हिन्दी अनुवाद

श्रीमैत्रेय जी कहते हैं- विदुर जी! जिस समय देवांगनाएँ इस प्रकार स्तुति कर रही थीं, भगवान् के जिस परमधाम को आत्मज्ञानियों में श्रेष्ठ भगवत्प्राण महाराज पृथु गये, महारानी अर्चि भी उसी पतिलोक को गयीं। परम भागवत पृथु जी ऐसे ही प्रभावशाली थे। उनके चरित बड़े उदार हैं, मैंने तुम्हारे सामने उनका वर्णन किया। जो पुरुष इस परम पवित्र चरित्र को श्रद्धापूर्वक (निष्काम भाव से) एकाग्रचित्त से पढ़ता, सुनता अथवा सुनाता है-वह भी महाराज पृथु के पद-भगवान् के परमधाम को प्राप्त होता है। इसका सकाम भाव से पाठ करने से ब्राह्मण ब्रह्मतेज प्राप्त करता है, क्षत्रिय पृथ्वीपति हो जाता है, वैश्य व्यापारियों में प्रधान हो जाता है और शूद्र में साधुता आ जाती है। स्त्री हो अथवा पुरुष-जो कोई उसे आदरपूर्वक तीन बार सुनता है, वह सन्तानहीन हो तो पुत्रवान्, धनहीन हो तो महाधनी, कीर्तिहीन हो तो यशस्वी और मूर्ख हो तो पण्डित हो जाता है। यह चरित मनुष्यमात्र का कल्याण करने वाला और अमंगल को दूर करने वाला है। यह धन, यश और आयु की वृद्धि करने वाला, स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाला और कलियुग के दोषों का नाश करने वाला है। यह धर्मादि चतुर्वर्ग की प्राप्ति में भी बड़ा सहायक है; इसलिये जो लोग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को भलीभाँति सिद्ध करना चाहते हों, उन्हें इसका श्रद्धापूर्वक श्रवण करना चाहिये। जो राजा विजय के लिये प्रस्थान करते समय इसे सुनकर जाता है, उसके आगे आ-आकर राजा लोग उसी प्रकार भेंटें रखते हैं, जैसे पृथु के सामने रखते थे। मनुष्य को चाहिये कि अन्य सब प्रकार कि आसक्ति छोड़कर भगवान् में विशुद्ध निष्काम भक्ति-भाव रखते हुए महाराज पृथु के इस निर्मल चरित को सुने, सुनावे और पढ़े।

विदुर जी! मैंने भगवान् के माहात्म्य को प्रकट करने वाला यह पवित्र चरित्र तुम्हें सुना दिया। इसमें प्रेम करने वाला पुरुष महाराज पृथु की-सी गति पाता है। जो पुरुष इस पृथु-चरित का प्रतिदिन आदरपूर्वक निष्काम भाव से श्रवण और कीर्तन करता है; उसका जिनके चरण संसार सागर को पार करने के लिये नौका के समान हैं, उन श्रीहरि में सुदृढ़ अनुराग हो जाता है।


साभार krishnakosh.org

कोई टिप्पणी नहीं: