मंगल पांडे.
1853 में सिपाहियों को नई बंदूक दी गई थी, जिसे भरने के लिए कारतूस को दांत से काटकर खोलना पड़ता था। कारतूस के बाहरी कवर में चर्बी लगी होती थी। सिपाहियों को पता चला कि यह चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनी है। यह चीज हिंदू और मुस्लिम, दोनों धर्म के सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ थी। इससे वे लोग भड़क गए। वही चर्बी मंगल पांडे के लिए भी बगावत का कारण बनी।
उस समय क्रांतिकारी एवं भारतीय नागरिक, अंग्रेजों को फिरंगी के नाम से पुकारते थे। देश की आजादी के लिए पहले आवाज उठाने वाले मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ नारा दिया 'मारो फिरंगी को'
29 मार्च, 1857 को सिपाहियों को उसी कारतूस का इस्तेमाल करने के लिए कहा गया, तो मंगल पांडे ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। अंग्रेज अधिकारी इस पर भड़क गया और मंगल पांडे को गिरफ्तार करने के लिए सेना को आदेश दिया। सेना ने अंग्रेजी अधिकारी का आदेश नहीं माना। इसके बाद पलटन का सार्जेंट हडसन, फिर लेफ्टिनेंट बाग ने खुद आगे बढ़कर मंगल पांडे को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन मंगल पांडे ने दोनों को गोली मार दी। यह देखकर घटनास्थल पर मौजूद अन्य अंग्रेज सिपाहियों ने मंगल पांडे को घायल कर पकड़ लिया।
मंगल पांडे पर फौजी अदालत में मामला चलाया गया, जिसमें उसको विद्रोह का दोषी करार दिया और 6 अप्रैल, 1857 को मौत की सजा सुनाई गई। मंगल पांडे की लोकप्रियता और सम्मान की ऐसी स्थिति थी कि बैरकपुर के जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से इन्कार कर दिया। तब कलकत्ता से चार जल्लादों को बुलाया गया और 8 अप्रैल, 1857 को, देश के स्वतंत्रता संग्राम के पहले नायक, मंगल पांडे को फांसी दे दी गई।
अंग्रेजों के बीच मंगल पांडे का भय कितना था?, इस बात से पता चलता हैं कि उसको 18 अप्रैल, 1857 को फांसी होनी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार को यह भय था कि इससे बगावत और फैल जाएगी, इसलिए 10 दिन पहले ही उनको फांसी दे दी गई।
यह कहा जा सकता है कि 1857 की क्रांति की नींव मंगल पांडे के बगावत के समय ही पड़ गई थी। मंगल पांडे ने बगावत की जो चिंगारी भड़काई थी, वह जल्दी बुझी नहीं। करीब एक महीने बाद ही 10 मई, 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गई जो देखते-देखते देश के बड़े हिस्से में फैल गई। इससे डरकर ब्रिटिश सरकार ने भारतीय जनता पर कई कानून थोप दिए ताकि फिर दोबारा कोई मंगल पांडे पैदा न हो सके।
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