स्वयं अंदर से प्रकट
होता है-ज्ञान.
इस विषय को स्पष्ट करते हुए महात्मा परमचेतनानंद ने अपने प्रवचन में कहा कि शिक्षा शब्द शिक्ष धातु से बना है, जिसका अर्थ है 'सीखना'। भौतिक शिक्षा अनुकरण के द्वारा सीखी जाती है, जिसका संबंध ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेद्रिंयों व मन बुद्धि तक सीमित है। इसके अतिरिक्त विद्या शब्द विद् धातु से बना है, जिसका अर्थ है 'जानना' अर्थात् 'वास्तविक ज्ञान।'
यह ज्ञान स्वयं अंदर से प्रकट होता है, इसे ही अध्यात्म ज्ञान कहा जाता है। इसे आत्मा की गहराई में पहुंचने पर ही जाना जाता है।
शिक्षा के विद्वान अहंकार से ग्रसित होते हैं, उनमें विनम्रता का अभाव होता है, जबकि विद्या का प्रथम गुण विनम्रता है। विद्या वास्तव में मानव की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।
इस अध्यात्म विद्या से मानव 'निष्काम कर्म योगी' बनता है, जो सभी को समान भाव से देखता है।
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