लक्ष्मी कहाँ नहीं रहती?


लक्ष्मी हाँ हीं हती?
(पं. तुलसीराम शर्मा)

किसी एक प्रसंग पर लक्ष्मी जी ने कहा है; 

स्थिता पुण्यवताँ गेहे सुनीतिपथवेदिनाम्।
गृहस्थानाँनृपाणाँ वा पुत्रवत्पालयामितान्॥ 19॥

आशय- नीति मार्ग पर चलने वाले, पुण्य कर्म करने वाले गृहस्थ व राजाओं के यहाँ मैं टिकती हूँ, और ऐसों का मैं पुत्र के समान पालन करती हूँ।

गृहान् यास्यामि देवानाँ युष्माकं चाज्ञया द्विजाः।
येषाँगेहं नगच्छामि श्रृणुध्वं भारतेषु च॥ 20॥
(ब्रह्मवैवर्त पु. 3। 23) 

आशयतुम ब्राह्मणों की आज्ञा से देवों के गृह में, मैं जाऊँगी। जिनके घर न जाऊँगी, उनको सुनो।

मिथ्यावादीचयः शश्वनध्यायीचयः सदा।
सत्वहीश्च दुश्शीलोनगेहं तस्ययाम्यहम्॥ 21॥ 

आशयमिथ्यावादी, धर्म ग्रन्थों में न दिखने वाला, पराक्रम से हीन, खोटे स्वभाव का, ऐसे पुरुषों के गृह में, मैं नहीं जाती।

सत्यहीनः स्थाप्यहारी मिथ्या साक्ष्य प्रदायकः।
विश्वसघ्नः कृतघ्नो वायामि तस्यनमन्दिरम्॥ 22॥ 

आशयसत्य से हीन सी धरोहर मारने वाला, झूठी गवाही देने वाला, विश्वास देकर मुकरने वाला, ऐसों के घर मैं नहीं जाती।

चिन्ताग्रस्तो भयग्रस्तः शत्रुग्रस्तोऽतिपातकी।
ऋणग्रस्तोऽति कृपणो न गेहं यामिपापिनाम्॥ 23॥ 

आशयचिन्ताग्रस्त, भयग्रस्त, शत्रुग्रस्त, पातकी, कर्जदार, अधिक कंजूस ऐसे पापियों के घर मैं नहीं जाती।

दीक्षाहीनश्चशोकार्त्तोमन्दघीः स्त्रीजितः सदा।
नयास्यामि कदागेहं पुँश्चल्याः पतिपुत्रयोः॥ 24॥ 

आशयगुरु से हीन, शोक ग्रस्त, मंदबुद्धि, स्त्री का गुलाम, व्यभिचारिणी का पति और पुत्र ऐसे पुरुष के यहाँ मैं कदापि नहीं जाती।

योदुवीक् कलर्हावष्टः कलिः शश्वद्यदालाये।
स्त्रीप्रधाना गृहेयस्य यामितस्यनमंदिरम्॥ 25॥ 

आशयकटुभाषी, कलहप्रिय, जिसके घर निरन्तर कलह होता रहे, जिसके यहाँ स्त्री की चलती रहे, ऐसे पुरुष के यहां मैं नहीं जाती।
यत्रनास्ति हरेः पूजातदीय गुणकीर्तनम्।
नोत्सुकस्तत्प्रशंसायाँयामि तस्यतमन्दिरम्॥ 26॥ 

आशयजहाँ भगवान की पूजा और कीर्तन नहीं, भगवान की प्रशंसा में उत्सुकता नहीं, ऐसे घर में, मैं नहीं जाती।

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