एक शब्द जो जीवन की दिशा और दशा बदल देता है.


एक शब्द जो जीवन की
दिशा और दशा बदल देता है.
(सुधांशु जी महाराज)

जगत में जिस नाम के पूर्वभाग में सत्शब्द का समावेश हो, वह सत्नाम परमात्मा तक पहुंचने की सीढ़ी का कार्य करता है। इस अनोखे सत्-उपसर्ग में सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है गुरु। गुरु नाम के अग्रभाग में जब सत् का समन्वय होता है, तभी सद्गुरु कहलाता है।

संसार में सद्गुरु ही मनुष्यों को परमात्मा के चरणों तक पहुंचाने का माध्यम सिद्घ होता है। अल्पज्ञता के कारण मनुष्य गलतियों का पुतला कहलाता है और सद्गुरु मनुष्य की त्रुटियों का अंत करके उसके अन्दर की सोयी शक्तियों को जागृत करता है, सुयोग्यता बढ़ाता है और पार जाने का मार्ग सुझाता है।

सत्-उपसर्ग की ही अगर बात करें तो विचार शब्द के आगे सद् लगने से सद्विचार, आचरण के आगे सद लगने से सदाचारण, व्यवहार के आगे सद् लगने से सद्व्यवहार, आहार के आगे सद लगने से सद् आहार और मनुष्य के मन में अगर सद्गुरु की कृपा से यह सत् समा जाए तो मनुष्य सज्जन कहलाता है, सौम्य बन जाता है। फिर मानव के जीवन की दिशा सुदिशा हो जाती है। सुदिशा पर चलने से जीवन की दशा बदल जाती है।

सद्गुरु के आशीष से जो मनुष्य अपने जीवन की दिशा बदल ले उसकी दशा स्वयं ही सुधर जाएगी। दिशा और दशा का आपस में ऐसा अटूट संबंध है जैसे पुष्प का सुगन्ध से, दीपक का बाती से और जीवन का बोध से जो अटूट संबंध है, वही स्थिति दिशा और दशा की है।

हमारी दिशा यदि शुद्घ, सात्विक, पावन, हितकारी तथा सर्वमंगल की है तो दशा भी उत्तम, सार्थक, सफल एवं लक्ष्यप्राप्ति में सहायक सिद्घ होकर अमर पद निश्चित ही प्राप्त करा सकेगी।



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