जीवन में अन्याय है,
हमें ही समझना होगा.
(सुखबोधानंद जी महाराज)
उसकी स्थिति पर द्रवित होकर उस युवक ने जाल काटना शुरू किया और उसे आजाद करना शुरू किया। जैसे ही मगरमच्छ का सिर जाल से आजाद हुआ उसने अपने मजबूत जबड़े से युवक का पैर पकड लिया। अब लड़का चिल्लाने लगा, 'तुम कितने निर्दयी हो!"
मगरमच्छ ने कहा, 'मैं क्या कर सकता हूं? दुनिया का यही नियम है। यह न्याय-अन्याय कुछ नहीं है। जीवन इसी तरह चलता है।" युवक मरने से ज्यादा इस बात से दुखी था कि मगर ने उसके साथ धोखा किया। जब वह युवक इस स्थिति में तब उसने पास के वृक्ष पर बैठी चिड़िया से पूछा, 'क्या यह मगर सच कह रहा है?
क्या जीवन में चीजें न्यायपूर्ण नहीं है? क्या लोग अपने वादों को नहीं निभाते हैं?" चिड़िया ने जवाब दिया, 'हम वृक्ष के ऊपरी हिस्से पर अपना घोंसला बनाते हुए सावधानी बरतते हैं कि हमारे अंडे कोई चुरा न ले। फिर भी सांप आता है और हमारे अंडे खा जाता है। मगरमच्छ सच कह रहा है कि जिंदगी में हर चीज नियमों के अनुरूप हो यह जरूरी नहीं है।"
फिर युवक ने नदी के किनारे एक गधे को रेंगते हुए सुना और उससे भी वही प्रश्न पूछा। गधे ने कहा, 'जब मैं युवा था, तो मेरा मालिक मेरी पीठ पर बहुत सारी मिट्टी ढोता था और मुझसे बहुत ज्यादा काम लेता था। अब मैं बूढ़ा और कमजोर हो गया हूं तो उसने मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया है।
दुनिया असल में इसी तरह निष्ठुर है। दुनिया में अन्याय है और इसी तरह दुनिया चलती है।!" लेकिन युवक अभी भी संतुष्ट नहीं हुआ था तो उसने समीप से गुजरते हुए खरगोश से वही प्रश्न पूछा।
खरगोश ने कहा, 'नहीं, हरगिज नहीं! मगरमच्छ जो कह रहा है उससे मैं कतई सहमत नहीं हूं। यह बिलकुल बकवास है!" यह सुनकर मगरमच्छ गुस्सा हो गया और भले ही उसके मुंह में युवक का पैर था मगर वह धीरे-धीरे कुछ गुर्राने लगा।
खरगोश ने विरोध में कहा कि चूंकि युवक का पैर तुम्हारे मुंह में है तो तुम क्या कह रहे हो मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा है। मगरमच्छ हंसा और उसने उसी अंदाज में कहा, 'मैं मूर्ख नहीं हूं! अगर मैं तुमसे जोर से बात करने लगता हूं तो मेरी पकड ढीली हो जाएगी और यह युवक भाग निकलेगा।"
खरगोश ने कहा, 'तुम वास्तव में बहुत मूर्ख हो। क्या तुम भूल जाते हो कि तुम्हारी पूंछ बड़ी ताकतवर है और तुम उसके एक वार से युवक को गिरा सकते हो!"
मगरमच्छ यह सुनकर खुद पर मुग्ध हो गया और उसने युवक को छोड़ खरगोश के साथ तर्क करना जरूरी समझा। इस अवसर को भुनाते हुए युवक भाग निकला। और जब मगरमच्छ ने अपनी पूंछ के जरिए वार करना चाहा तो पाया कि उसकी पूंछ अभी भी जाल में फंसी हुई है।
मगरमच्छ ने घूरकर खरगोश को देखा। खरगोश मुस्कुराया और उसने कहा कि 'अब तुम अच्छे से समझ सकोगे कि दुनिया ऐसी ही है। मतलबी और काम निकालने वाली!"
थोड़ी ही देर में वह युवक अपने गांव लौटने लगा तभी एक कुत्ते ने तभी खरगोश को देखा और उसका पीछा करने लगा। युवक कुत्ते पर चिल्लाया, 'इस खरगोश ने मेरी जान बचाई है, इस पर हमला मत करो।" मगर इससे पहले कि युवक बीचबचाव कर पाता, कुत्ते ने खरगोश का शिकार कर लिया और उसे मार गिराया।
अन्याय तो जीवन का हिस्सा है और जीवन इसी तरह चलता है। हम खुद को समझा सकते हैं कि इस जीवन में सारी चीजें सलीके से हों ऐसा कभी नहीं होगा। हमें यह समझना होगा कि जिंदगी के रहस्यों को कभी भी पूरी तरह नहीं समझा जा सकता है!
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