राजा निमि.



राजा निमि.


“निमि”, महाराज इक्ष्वाकु के पुत्र थे और महर्षि गौतम के आश्रम के समीप वैजयन्त नामक नगर बसाकर वहाँ का राज्य करते थे।

एक बार निमिजी ने  सहस्त्र वर्षीय यज्ञ करने के लिये श्री वसिष्ठजी को वरण किया। लेकिन उस समय श्री वसिष्ठजी, इन्द्र का यज्ञ कर रहे थे। निमिजी क्षण भंगुर शरीर विचार करके गौतमादि अन्य होताओं को पुनः वरण करके यज्ञ करने लगे
जब श्री वसिष्ठ जी को पता चला कि दूसरों से यज्ञ करा रहे हैं तो इन्होंने शाप दे दिया कि ये शरीर से रहित हो जांय।

लोभ-वश वसिष्ठजी ने श्राप दिया है, ऐसा जानकर निमिजी ने भी वसिष्ठजी को देह से रहित होने का श्राप दे दिया। परिणामत: दोनों ही भस्म हो गये।

यज्ञ समाप्ति पर देवताओं ने प्रसन्न होकर निमिजी को पुनः जीवित होने का वरदान दे रहे थे लेकिन नश्वर शरीर होने के कारण निमिजी ने कहा मैं पलकों में निवास करूँ ऐसा वरदान मांगा। तभी से पलकें गिरने लगीं।

ऋषियों ने एक विशेष उपचार से यज्ञ समाप्ति तक निमि का शरीर सुरक्षित रखा।

निमि के कोई सन्तान नहीं थी। अतएव ऋषियों ने अरणि से उनके  शरीर का मन्थन किया, जिससे  एक पुत्र उत्पन्न हुआ।

जन्म लेने के कारण ‘जनक’,  विदेह होने के कारण ‘वैदेह’ और मन्थन से उत्पन्न होने के कारण उस बालक का नाम ‘मिथिल’ हुआ। उसी ने मिथिलापुरी बसाईं। इसी कुल में श्री शीरध्वज जनक के यहाँ आदिशक्ति सीता ने अवतार लिया था।

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