योग्यता का सम्मान.



योग्यता का सम्मान.

प्राचीन समय की बात है। मगध देश  पर रिपुदमन नामक राजा राज्य करता था। वह अपने मंत्रियों को पूरा सम्मान देता था तथा उनकी प्रत्येक राय पर गंभीरतापूर्वक विचार किए बिना कोई निर्णय नहीं लेता था।

जब रिपुदमन बूढ़ा होने लगा तो उसने अपने वरिष्ठ एवं विश्वासपात्र मंत्रियों की सलाह लेने के पश्चात अपने  ज्येष्ठ पुत्र शौर्यवीर को गद्दी पर बिठा दिया। शौर्यवीर के दरबार में अखिलेष्वर शर्मा उसके पिता के समय से ही महामंत्री के पद पर नियुक्त था।

रिपुदमन ने शौर्यवीर से कह रखा था कि वह कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय महामंत्री अखिलेष्वर शर्मा की राय अवश्य ले।

राज्य के अन्य मंत्री,  अखिलेष्वर शर्मा से ईर्ष्या करते थे। वे अखिलेष्वर शर्मा को महामंत्री के पद पर देखकर राजी नहीं थे तथा उन्हें पद से हटाने की तुच्छ रणनीति बनाने में लगे रहते थे।
विष्णुधर नामक भी उनमें से एक था और हमेशा राजा और उनके पिता, दोनों के कान इस इस उद्देश्य से भरता रहता था कि किसी तरह  अखिलेष्वर शर्मा पद से हट जाये और उस पद का लाभ, उसे मिले। 

 एक दिन राजा के पिता रिपुदमन ने विष्णुधर और अखिलेश्वर शर्मा दोनों से कहा कि  शाही बाग में एक कुतिया ने बच्चों को जन्म दिया है, तुम जाओ और पता करके आओ कि कुतिया ने कितने बच्चों को जन्म दिया है। विष्णुधर घोड़े पर सवार होकर शाही बाग में पहुंचा और अपना काम करके वापस राजमहल लौटा। महाराज के पिता रिपुदमन ने पूछा कि कुतिया ने कितने बच्चों को जन्म दिया है तो उन्होंने बताया कि कुतिया ने चार बच्चों को जन्म दिया है। महाराज ने अगला प्रश्न पूछा कि कितने बच्चे नर और कितने मादा हैं।

महामंत्री को इस बात का उत्तर मालूम नहीं था।

वे दोबारा बाग में पहुंचे तथा इस प्रश्न का उत्तर पता करके रिपुदमन को बताया। रिपुदमन ने तीसरा प्रश्न यह पूछा कि कुतिया के बच्चे किस किस रंग के हैं। महामंत्री विष्णुधर तीसरी बार फिर शाही बाग में पहुंचे। उन्होंने कुतिया के बच्चों का रंग पता कर महाराज के पिता रिपुदमन को बता दिया। 


अब अखिलेष्वर शर्मा की बारी आई
। भरे दरबार में उन्हें बुलाया गया और  उनसे भी रिपुदमन ने वही प्रश्न पूछे जो विष्णुधर से पूछे थे। अखिलेष्वर शर्मा ने सभी प्रश्नों का उत्तर एक साथ दे दिया।

रिपुदमन ने अपने पुत्र राजा शौर्यवीर की तरफ देखा, जो अब सब समझ और जान चुका था। उन्होंने विष्णुधर से कहा पद और सम्मान की वास्तविक हक्कदार "योग्यता" होती हैं
, चुगलखोरी नहीं। विष्णुधर को भरी सभा में लज्जित होना पड़ा

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