:काल-सर्प योग:
1. अनंत काल सर्प योग:- यदि जातक के जन्मांक के प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु हो और शेष ग्रह इनके मध्य में हो, तो अनंत काल सर्प योग होता हैं, जिससे जातक के घर में कलह होती रहती है। परिवार वाले या मित्रों से धोखा मिलने की आशंका हमेशा बनी रहती है। मानसिक रूप से व्यक्ति परेशान रहता है, हालांकि ऐसे लोग सिर्फ अपने मन की ही करते हैं।
2.कुलिक काल सर्प योग:- यदि जातक के जन्मांक के द्वितीय भाव में राहु और अष्टम भाव में केतु हो और शेष ग्रह इनके मध्य में हो तो यह कुलिक काल सर्प योग होता है, जिसके कारण जातक गुप्त रोग से जूझता रहता है। इसके शत्रु भी अधिक होते हैं, परिवार में परेशानी रहती है और वाणी में कटुता रहती है।
3.वासुकि काल सर्प योग;- यदि जातक के जन्मांक में राहु तृतीय और केतु भाग्य भाव यानि 9वें भाव में हो और शेष ग्रह इनके मध्य में हो तो वासुकि काल सर्प योग होता है। ऐसे जातकों को भाईयों से कभी सहयोग नहीं मिलता। ऐसे लोगों का स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। ये लोग कितना भी कष्ट क्यों न आ जाये, किसी से कहते नहीं।
4.शंखपाल काल सर्प योग:- यदि जातक के जन्मांक में मातृ यानि चतुर्थ स्थान पर राहु और कर्म यानि 10वें भाव में केतु और शेष ग्रह इनके मध्य में हों, तो शंखपाल काल सर्प योग माना जाता है। ऐसे लोगों का माता-पिता से हमेशा झगड़ा होता रहता है और परिवार में कलह बनी रहती है। ऐसे लोगों को दोस्तों से भी नहीं बनती है।
5.पद्म काल सर्प योग:- जिन लोगों की कुंडली के पांचवें सथान पर राहु और ग्यारहवें भाव में केतु हो और शेष ग्रह इनके मध्य में हो तो उस स्थिति में पद्म काल सर्प योग होता है। ऐसे लोग बुद्धिमान होते हैं, जमकर मेहनत करते हैं, लोगों से उनका व्यवहार काफी अच्छा होता है और प्रतिष्ठित पदों तक पहुंचते हैं। लेकिन अनावश्यक चीजों को लेकर उनके मान-सम्मान को हानि पहुंचना, आम बात होती है। एक के बाद एक परेशानियां बनी रहती हैं। इनका पहला पुत्र कष्टकारी होता है।
6.महापद्म काल सर्प योग:- यदि किसी की कुंडली के छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु के मध्य सभी ग्रह विद्यमान हों तो महापद्म काल सर्प योग होता है। ऐसे लोगों के खिलाफ लोग तंत्र-मंत्र का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। इन्हें मानसिक रोग लगने की आशंका ज्यादा रहती है। यदि राहु के साथ मंगल है तो इनके सारे शत्रु परस्त हो जाते हैं। यानी इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। विदेश यात्रा से लाभ मिलता हैं, लेकिन साझेदारी के व्यापार में हानि उठानी पड़ती है।
7.तक्षक काल सर्प योग:- यदि व्यक्ति की कुंडली के सातवे भाव में राहु और पहले भाव में केतु और सभी ग्रहों को अपने बीच समेटे हुए हो तो तक्षक काल सर्प योग होता है। ऐसे लोग अच्छी विद्या हासिल करते हैं। इन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है। ये उदारवादी होते हैं, लेकिन कभी-कभी पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ता है। ये कभी भी किसी पर मेहरबान हो सकते हैं।
8.कर्कोटक काल सर्प योग:- यह योग तब बनता है, जब कुंडली के आठवें भाव में राहु और द्वितीय भाव में केतु हो और शेष ग्रह इनके मध्य में हो । ऐसे लोगों का वैवाहिक जीवन में तनाव बना रहता है। पैतृक संपत्ति जल्दी नहीं मिल पाती है। ऐसे लोग नौकरी या व्यापार के लिये हमेशा परेशान रहते हैं। कर्ज भी बहुत जल्दी चढ़ जाता है। हृदय और सांस के रोग की परेशानी बनी रहती है।
9.शंखनाद काल सर्प योग:- यदि कुंडली में सातों ग्रहों को मध्य में लेकर राहु नवम स्थान पर हो और केतु तीसरे भाव में हो तो यह शंखनाद काल सर्प योग होता है। इसके अंतर्गत भाग्य अच्छा होते हुए और कड़ी मेहनत के बावजूद मनमाफिक फल नहीं मिलते। ऐसे लोगों के शत्रु गुप्त होते हैं। इनमें सहने की शक्ति बहुत होती है और लोग इनका नाजायज फायदा उठाने की कोशिश में रहते हैं।
10.घातक काल सर्प योग:-घातक काल सर्प योग उस स्थिति में बनता है जब कुंडली के दशम भाव में राहु और चतुर्थ भाव में केतु हो और शेष ग्रह इनके मध्य में हो । ये दोनों मिलकर सभी ग्रहों को निगलने का प्रयास करते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति हर छोटी-छोटी चीज के लिये छटपटाते रहते हैं। इन्हें खाली बैठना पसंद नहीं होता। जीवन पर्यंत पैसे की चिंता बनी रहती है। ये अपनी इंद्रियों पर काबू नहीं रख पाते हैं और बहुत जल्दी शराब आदि का नशा लग जाता है।
11.विषधर काल सर्प योग:- विषधर काल सर्प योग उस स्थिति में बनता है, जब कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु और पांचवे भाव में केतु और शेष ग्रह इनके मध्य में हो। ऐसे लोग जीवन भर परेशान रहते हैं। मानसिक तनाव बना रहता है। इनके हर काम में कोई न कोई अडचन जरूर आती है।
12.शेषनाग काल सर्प योग:- यदि जन्मांग के बारहवे भाव में राहु और छटवे भाव में केतु विद्यमान हों और शेष ग्रह इनके मध्य में हो तो शेषनाग काल सर्प योग बनता है। ऐसे जातक जीवन भर घर परिवार, मान सम्मान, धन आदि के लिये संघर्ष करते रहते हैं। ऐसे लोग जिन पर विश्वास करते हैं, उनसे धोखा निश्चित तौर पर उठाना पड़ता है। लेकिन यह अपनी परेशानी किसी से कह नहीं पाते हैं।
उपरोक्त के अतिरिक्त अन्य ग्रहों से संयोग प्राप्त होने काल सर्प योग का फल भी प्रभावित हो जाता हैं। इसलिये जब तक पूर्णतया सुनिश्चित न हो जाये, अपने मन में अनावश्यक भ्रम पालने की आवश्यकता नहीं हैं। यह जानकारी आपको भ्रमित होने से बचने के लिए ही दी गई हैं।
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