स्वामी विवेकानंदजी ... 3 प्रेरक प्रसंग






लक्ष्य पर ध्यान लगाओ..-1

स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे|  एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगाते देखा|  किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था|  तब उन्होंने ने एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे| उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा| .. फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाये और सभी बिलकुल सटीक लगे|  ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पुछा, ” भला आप ये कैसे कर लेते हैं?”

स्वामी जी बोले , “तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ| अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए, तब तुम कभी चूकोगे नहीं| अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो| मेरे देश में बच्चों को ये करना सिखाया जाता है| ”


डर का सामना.. -2

एक बार बनारस में स्वामी जी दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे, तभी वहां मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया| वे उनके नज़दीक आने लगे और डराने लगे| स्वामी जी भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए दौड़ कर भागने लगे, पर बन्दर तो मानो पीछे ही पड़ गए और वे उन्हें दौडाने लगे| पास खड़ा एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रहा था, उसने स्वामी जी को रोका और बोला, ” रुको ! उनका सामना करो !”

स्वामी जी तुरन्त पलटे और बंदरों की  ओर बढ़ने लगे, ऐसा करते ही सभी बन्दर भाग गए . इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा भी – ” यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो.”


सच बोलने की हिम्मत.
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स्वामी विवेकानंद प्रारंभ से ही एक मेधावी छात्र थे और सभी उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे| जब वे साथी छात्रों से कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो उन्हें सुनते थे|  एक दिन इंटरवल के दौरान वे कक्षा में कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे कि उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आये और पढ़ाना शुरू कर दिया|

मास्टर जी ने अभी पढ़ना शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी|

” कौन बात कर रहा है ?” उन्होंने तेज आवाज़ में पूछा . सभी ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों की ओर इशारा कर दिया|

मास्टर जी तुरंत क्रोधित हो गए| उन्होंने,  उन छात्रों को तुरंत बुलाया और पाठ से संबधित  प्रश्न पूछने लगे| जब कोई भी उत्तर न दे सका, तब अंत में मास्टर जी ने स्वामी जी से भी वही प्रश्न किया,  पर स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हों, उन्होंने आसानी से उत्तर दे दिया|

यह देख उन्हें यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बात-चीत में लगे हुए थे|  फिर क्या था उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी| सभी छात्र एक -एक कर बेच पर खड़े होने लगे, स्वामी जे ने भी यही किया|

तब मास्टर जी बोले, ” नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद) तुम बैठ जाओ.”

” नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि  "मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था", स्वामी जी ने आग्रह किया|

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