प्रश्न हैं कि भाषा की गणना कला में की जाय या विग्यान में| कला के अंतर्गत केवल मनुष्य की कृतियाँ ही आती हैं, जैसे चित्रकला, मूर्तिकला, काव्यकला, आदि| विग्यान उसे कहते हैं, जिसमें ईश्वर या प्रकृतियो की मीमांसा होती हैं, जैसे भौतिकविज्ञान, जीवविज्ञान, मनोविज्ञान आदि| भाषा, विग्यान हैं या कला? इस पर यूरोप के विद्वानों ने बहुत कुछ विचार किया हैं और अंत में यही सिध्दाँत निकला हैं कि यह विग्यान हैं, कला नहीं| क्योकि भाषा भी वास्तव में एक ईश्वरदत्त शक्ति है और उसका आरंभ तथा विकाश आदि भी प्राकृतिक रूप में ही होता हैं| मनुष्य अपनी शक्ति से और जान-बूझकर कदाचित ही उसमे कोई परिवर्तन कर सकता हैं| यदि इस सम्बन्ध वह में कुछ भी कर सकता हैं, तो एक तो वह प्राय: नहीं के बराबर होता हैं, और दूसरे जो कुछ हो भी सकता हैं, वह व्यक्तिगत प्रयत्न से नही वरन सामूहिक या समाजिक रूप से होता हैं और जो काम सामूहिक या समाजिक रूप से हो, वह प्राय: प्राकृतिक के समान ही माना जाता हैं| इसके अतिरिक्त भाषा में विज्ञान के और भी लक्षण पाए जाते हैं| इन्हीं कारणों से इसकी गणना कला में नहीं, विग्यान में होती हैं|
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भाषा कला हैं या विग्यान?
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