श्रीकृष्ण को गांधारी का श्राप.



श्रीकृष्ण को गांधारी का श्राप.

कुरुक्षेत्र का युद्ध समाप्त हो चुका था। अधर्म का साथ देने वाले गांधारी के निन्यानवे पुत्र, और उनका सौवा पुत्र जो युद्धिष्ठिर, के पक्ष से लड़ा था, सारे के सारे मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। विजय के बाद अर्जुन, युद्धिष्ठिर, नकुल, सहदेव, भीम, देवी कुंती तथा श्रीकृष्ण, हस्तिनापुर आये और धृतराष्ट्र तथा देवी गांधारी से भेंट की।
वापस जाते समय देवी गांधारी के कक्ष में श्रीकृष्ण, आज्ञा लेने जाते हैं। उस समय गांधारी अपने सौ पुत्रों की मृत्यु के अवसाद से ग्रस्त थी । वह कृष्ण से कहती हैं कि अगर तुम चाहते तो युद्ध को रोक सकते थे ना?

 श्रीकृष्ण, " हाँ " में जवाब देते हैं। 

यह वचन सुन कर गांधारी के क्रोध का बांध टूट जाता है और वह श्री कृष्ण को श्राप दे देती है कि- जैसे हमारे वंश का नाश हुआ और हम उसे रोक ना पाये… वैसे ही तुम्हारे वंश का भी सर्वनाश होगा और तुम भी उसे रोक नहीं पाओगे।

अन्तोगत्वा यादव-वंश का नाश हो गया। यादव एक दूजों के साथ ही लड़ मरे थे। इस तरह देवी गांधारी का शाप सत्य घटित हो गया था।

कोई टिप्पणी नहीं: