हैंग टिल डेथ.

 अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खाँ के पुत्र सैय्यद महमूद बहुत काबिल वकील थे और कोई केस नहीं हारते थे, लेकिन वह जबरदस्त पीने वाले थे और पीते वक्त किसी से कोई बात नहीं करते थे| एक बार पंजाब की किसी रियासत के राज कुमार को फांसी की सजा हो चुकी थी और उसके अभिभावक किसी के कहने पर उनके पीते समय पहुँच गए और उनके पाँव पकड़ कर उसे बचा लेने की गुहार करने लगे| पहले तो उन्होंने उनको खूब डाटा फिर उस केस को हाथ में ले लिया और कोई अपील वगैरह नहीं की| आखिर फंसी देने का वक्त आ गया| वह अपने मुवक्किल को बचाने का आश्वासन लगातार देते रहे|
 
फांसी स्थल पर जैसे ही उस राज कुमार के गले में रस्सी खींची गई सैय्यद महमूद साहब ने अपनी गुप्ती निकाल कर रस्सी काट दी| राज कुमार फंदा बंधे हुए गड्ढे में गिर पड़ा| उन्होंने दुबारा फंदा नहीं लगाने दिया| उन पर सरकारी कार्य में बढ़ा डालने का भी मुकदमा चला|
 
महमूद साहब ने कोर्ट में कहा "हैंग" का आर्डर था और "हैंग" किया जा चुका था, वह नहीं मरा तो दुबारा फांसी नहीं दी जा सकती| एक वकील के नाते उनका काम अपने मुवक्किल को बचाना था सो उन्होंने बचा लिया और किसी सरकारी कार्य में बाधा नहीं डाली क्योंकि उसे "हैंग" तो किया ही गया था| महमूद साहब दोनों मुकदमें जीत गए, परन्तु तभी से फांसी के मामले में 'हैंग टिल डेथ' लिखने की परिपाटी भी शुरू हो गई| 

(इसके पूर्व फांसी के न्यायालीन आदेश में "हेंग" शब्द का उपयोग होता था)

(विजय राजबली माथुर)

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