आत्म-विश्वास से सब कुछ सम्भव.
वह किसान के पास गये, उन्होंने कारण जानना चाहा तो उसका सीधा उत्तर था। महाराज! मेरे साथ कैसा अन्याय है? इस पर्वत को अन्यत्र स्थान ही नहीं मिला। बादल आते हैं, इससे टकराकर उस ओर वर्षा कर देते हैं और पर्वत से इस ओर जो मेरे खेत हैं वह सूखे ही रहते हैं।
‘क्या तुम इस विशाल पर्वत को हटा सकोगे?’
‘क्यों नहीं? मैं इसे हटाकर ही मानूँगा यह मेरा दृढ़ संकल्प है।’
सृष्टिकर्ता आगे बढ़ गये, उन्होंने अपने सामने पर्वतराज को याचना करते देखा। वह हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रहा था- ‘विधाता! इस संसार में सिवाय आपके मेरी रक्षा कोई नहीं कर सकता।’
‘क्या तुम इतने कायर हो, जो एक किसान के परिश्रम से डर गये’
‘मेरे भयभीत होने के पीछे कोई कारण है। क्या आपने अभी-अभी नहीं देखा था कि किसान में कितना आत्म-विश्वास है, वहाँ से वह मुझे हटाकर ही मानेगा। अगर उसकी इच्छा इस जीवन में पूरी न हुई तो उसके छोड़े हुये काम को उसके पुत्र और पौत्र पूरा करेंगे और मुझे भूमिसात् करके ही चैन लेंगे। आत्म-विश्वास असम्भव लगने वाले कार्य को भी सम्भव बना देता है।’ पर्वतराज ने कहा।
(अखंड ज्योति, सितम्बर-१९७२)
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