(लगातार-सम्पूर्ण
श्रीमद्भागवत पुराण)
श्रीमद्भागवत महापुराण:
चतुर्थ स्कन्ध: पंचदश अध्यायः
श्लोक 1-14 का
हिन्दी अनुवाद
महाराज
पृथु का आविर्भाव और राज्याभिषेक.
श्रीमैत्रेय जी कहते हैं- विदुर जी! उस समय ब्राह्मण लोग पृथु की स्तुति करने लगे, श्रेष्ठ गन्धर्वों ने गुणगान किया, सिद्धों ने पुष्पों की वर्षा की, अप्सराएँ नाचने लगीं। आकाश में शंख, तुरही, मृदंग और दुन्दुभि आदि बाजे बजने लगे। समस्त देवता, ऋषि और पितर अपने-अपने लोकों से वहाँ आये। जगद्गुरु ब्रह्मा जी देवता और देवेश्वरों के साथ पधारे। उन्होंने वेनकुमार पृथु के दाहिने हाथ में भगवान् विष्णु की हस्तरेखाएँ और चरणों में कमल का चिह्न देखकर उन्हें श्रीहरि का ही अंश समझा; क्योंकि जिसके हाथ में दूसरी रेखाओं से बिना कटा हुआ चक्र का चिह्न होता है, वह भगवान् का ही अंश होता है। वेदवादी ब्राह्मणों ने महाराज पृथु के अभिषेक का आयोजन किया। सब लोग उसकी सामग्री जुटाने में लग गये। उस समय नदी, समुद्र, पर्वत, सर्प, गौ, पक्षी, मृग, स्वर्ग, पृथ्वी तथा अन्य सब प्राणियों ने भी उन्हें तरह-तरह के उपहार भेंट किये। सुन्दर वस्त्र और आभूषणों से अलंकृत महाराज पृथु का विधिवत् राज्याभिषेक हुआ। उस समय अनेकों अलंकारों से सजी हुई महारानी अर्चि के साथ वे दूसरे अग्निदेव के सदृश जान पड़ते थे। वीर विदुर जी! उन्हें कुबेर ने बड़ा ही सुन्दर सोने का सिंहासन दिया तथा वरुण ने चन्द्रमा के समान श्वेत और प्रकाशमय छत्र दिया, जिससे निरन्तर जल की फुहियाँ झरती रहती थीं।
साभार krishnakosh.org
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