सम्भावनाओं की सुबह, संघर्षों के दिन.

सम्भावनाओं की सुबह,
संघर्षों के दिन.
(डॉ. प्रणव पण्ड्या)
इक्कीसवीं सदी के इस नववर्ष ने देश और धरती को सम्भावनाओं की सुबह का अनूठा उपहार दिया है। इस नये वर्ष 2020 में सम्भावनाएँ हैं, भविष्य के नये उजाले की, नयी मुस्कराहटों की, नयी समृद्धि एवं खुशहाली की। लेकिन इन सम्भावनाओं को साकार करने में संघर्ष भी कम नहीं है। सुबह यदि सम्भावनाओं की है तो दिन संघर्षों का है। हाँ यह सच है कि नववर्ष की हर नयी सुबह-सम्भावनाओं के नये संदेश लायेगी, पर इन्हें साकार वही कर पायेंगे जो नये साल के हर दिन को अपने संघर्षों की चुनौती समझेंगे। यह सच व्यक्ति के जीवन का है तो परिवार के जीवन का भी। समाज, राष्ट्र और विश्व भी इससे अलग नहीं है।

नववर्ष के पटल पर उभर रहे दृश्यों की गहरी पड़ताल करें तो एक ही सच सब के लिए है कि प्रकृति एवं प्रवृत्ति में बढ़ रहे अंधाधुंध प्रदूषण को रोकना है। क्योंकि इसी ने उज्ज्वल भविष्य की सभी सम्भावनाओं को रोक रखा है। प्रकृति में असंतुलित प्रदूषण ने ही भूकम्प, बाढ़ जैसी विनाशकारी आपदाओं के भयावह दृश्य खड़े किये हैं। दिल-दहला देने वाली इन महा-आपदाओं से उपजी करुण-कराह की अनसुनी भला कौन कर सकता है? ठीक यही, बल्कि इससे भी कहीं ज्यादा तबाही इंसानी प्रवृत्तियों में आये प्रदूषण ने की है।

इंसान की अपनी ही प्रदूषित प्रवृत्तियाँ हैं जो रोज नये बम धमाके करती हैं। सामूहिक हत्या एवं खौफनाक संहार के विद्रूप आयोजन करती हैं। इंसानियत का संघर्ष इन्हीं से है। संवेदनशीलों को अपने अंदर बलिदानी साहस पैदा करना है। प्रकृति एवं प्रवृत्ति के इस विनाशकारी ताण्डव नर्तन को आज और अभी से रोकना है। अब यह न पूछें कि शुरुआत कहाँ से करनी है?

क्योंकि इसके जवाब में सारी ऊँगलियाँ हमारी अपनी ओर ही उठ रही हैं। व्यक्ति के रूप में हमें ही व्यक्तिगत शुरुआत करनी है। समाज के जिम्मेदार घटक के रूप में हमें ही इसके सामूहिक आयोजन करने हैं। यह जिम्मेदारी राष्ट्रीय भी है और विश्व भर की भी। स्वस्थ प्रकृति एवं स्वच्छ प्रवृत्ति को अपना ध्येय वाक्य माने बिना उज्ज्वल भविष्य की सम्भावनाएँ साकार नहीं होंगी। लेकिन इसे कर वही पायेंगे जो अपनी हर सुबह को सम्भावनाओं की सुबह और हर दिन को संघर्षों का दिन बना लेंगे।



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