जिसे आप नही पचा सकते हो उसे भला कोई और कैसे पचा पायेगा?


जिसे आप नही पचा सकते हो
उसे भला कोई और कैसे पचा पायेगा?

राजा अक्षय का राज्य बहुत सुन्दर, समृध्द और शांत था। राजा महावीर और एक पराक्रमी योद्धा थे, परन्तु सुरक्षा को लेकर अक्षय कुछ तनाव में रहते थे क्योंकि सूर्यास्त के बाद शत्रु अक्सर उनके राज्य पर घात लगाकर आक्रमण करते रहते थे परन्तु कभी किसी शत्रु को कोई विशेष सफलता न मिली क्योंकि उनका राज्य एक किले पर स्थित था और पहाडी की चढ़ाई नामुंकिन थी और कोई भी शत्रु दिन में विजय प्राप्त नही कर सकता था.!

राज्य में प्रवेश के लिये केवल एक दरवाजा था और दरवाजे को बँद कर दे तो शत्रु लाख कोशिश के बावजूद भी अक्षय के राज्य का कुछ नही बिगाड़ सकते थे.!
मंत्री राजकमल हमेशा उस दरवाजे को स्वयं बँद करते थे.!

एकबार मंत्री और राजा रात के समय कुछ विशेष मंत्रणा कर रहे थे तभी शत्रुओं ने उन्हे बन्दी बनाकर कालकोठरी में डाल दिया.!

कालकोठरी में राजा और मंत्री बातचीत कर रहे थे ......

अक्षय - क्या आपने अभेद्य दरवाजे को ठीक से बन्द नही किया था मंत्री जी.?

राजकमल - नही राजन मैंने स्वयं उस दरवाजे को बन्द किया था.!

वार्तालाप चल ही रही थी कि वहाँ शत्रु चंद्रेश अपनी रानी व उसके भाई के साथ वहाँ पहुँचा, जब अक्षय ने उन्हे देखा तो अक्षय के होश उड़ गये और राजा अक्षय अपने गुरुदेव से मन ही मन क्षमा प्रार्थना करने लगे.! फिर शत्रु व उसकी रानी वहाँ से चले गये.!

राजकमल - क्या हुआ राजन? किन विचारों में खो गये.?

अक्षय - ये मैं तुम्हे बाद में बताऊँगा, पहले यहाँ से बाहर जाने की तैयारी करो.!

राजकमल - पर इस अंधेर कालकोठरी से बाहर निकलना लगभग असम्भव है राजन.!

अक्षय - आप उसकी चिन्ता न कीजिये, कल सूर्योदय तक हम यहाँ से चले जायेंगे.! क्योंकि गुरुदेव ने भविष्य को ध्यान में रखते हुये कुछ विशेष तैयारियाँ करवाई थी.!

कालकोठरी से एक गुप्त सुरंग थी, जो सीधी राज्य के बाहर निकलती थी, जिसकी पूरी जानकारी राजा के सिवा किसी को न थी और उनके गुरुदेव ने कुछ गहरी राजमय सुरंगों का निर्माण करवाया था और राजा को सख्त आदेश दिया था कि इन सुरंगों का राज किसी को न देना, राजा रातोंरात वहाँ से निकलकर मित्र राष्ट्र में पहुँचे, सैना बनाकर पुनः आक्रमण किया और पुनः अपने राज्य को पाने में सफल रहे।

परन्तु इस युध्द में उनकी प्रिय रानी, उनका पुत्र और आधी से ज्यादा जनता समाप्त हो चुकी थी! जहाँ चहु-ओर वैभव और समृद्धता थी, राज्य शान्त था, खुशहाली थी, आज चारों तरफ सन्नाटा पसरा था- मानो सबकुछ समाप्त हो चुका था!

राजकमल - हॆ राजन मॆरी अब भी ये समझ में नही आया की वो अभेद्य दरवाजा खुला कैसे? शत्रु ने प्रवेश कैसे कर लिया? जब की हमारा हर एक सैनिक पुरी तरह से वफादार है आखिर गलती किसने की?

अक्षय - वो गलती मुझसे हुई थी, मंत्रीजी! और इस तबाही के लिये मैं स्वयं को जिम्मेदार मानता हूँ। यदि मैंने गुरू आदेश का उल्लंघन न किया होता तो आज ये तबाही न आती। मॆरी एक गलती ने सबकुछ समाप्त कर दिया.!

राजकमल - कैसी गलती राजन?

अक्षय - शत्रु की रानी का भाई जयपाल कभी मेरा बहुत गहरा मित्र हुआ करता था और उसके पिता अपनी पुत्री का विवाह मुझसे करना चाहते थे पर विधि को कुछ और स्वीकार था और फिर एक छोटे से जमीनी विवाद की वजह से वो मुझे अपना शत्रु मानने लगा! और इस राज्य में प्रवेश का एक और दरवाजा है जो गुरुदेव और मेरे सिवा कोई न जानता था और गुरुदेव ने मुझसे कहा था की शत्रु कब मित्र बन जाये और मित्र कब शत्रु, कोई नही जानता है इसलिये जिन्दगी में एक बात हमेशा याद रखना की जो राज तुम्हे बर्बाद कर सकता है, उस राज को राज ही रहने देना कोई कितना भी घनिष्ठ क्यों न हो उसे भी वो राज कभी मत बताना, जिसकी वजह से तुम्हारा पतन हो सकता है!

और बस यही पर मैंने वो गलती कर दी और वो राज उस मित्र को जा बताया जो शत्रु की रानी का भाई था! जो कभी मित्र था, राजदार था, वही आगे जाकर शत्रु हो गया इसीलिये आज ये हालात हो गये!

राजा राज्य को चारों तरफ से सुरक्षित करके मंत्री को सोप दिया और स्वयं वन को चले गये.!

ऐसा कोई भी राज जो गोपनीय रखा जाना बहुत आवश्यक हो जिस राज के बेपर्दा होने पर किसी प्रकार का अमंगल हो सकता है, सम्भवतः उसे घनिष्ठ से घनिष्ठ व्यक्ति को भी मत बताना क्योंकि काल के गर्भ में क्या छिपा, कौन जाने? जिसे आप स्वयं राज नही रख सकते हो, उसकी उम्मीद किसी और से क्यों करते हो कि वह उस राज को राज बनाये रखेगा.?

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