सिख सम्प्रदाय के गुरु.|



सिख सम्प्रदाय के गुरु.|


01.  गुरु नानक देवजी

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी थे | उनका जन्म तलवंडी (ननकाना साहिब ,पाकिस्तान) में 20 अक्टूबर 1469 को हुआ था | गुरुजी ने पंजाबी ,संस्कृत और फारसी में बचपन से  ही महारत हासिल कर ली थी | कम उम्र में ही वे कर्मकाण्ड , जाति प्रथा , पूर्वाग्रहों ,पाखंड और मूर्ति पूजा के खिलाफ उठ खड़े हुए | उन्होंने अपने अनुयायियों को हिन्दू और मुसलमान के रूप में रहने के बजाय आपस में भाई भाई की तरह रहने का उपदेश दिया था जो एक ही परम सत्ता में विश्वास करते थे |


गुरुनानक देवजी ने चार उदासी यात्राये की | इस दौरान देश के विभिन्न भागो में सामाजिक , धार्मिक जागृति फैलाने के साथ साथ वे मक्का और बगदाद भी गये | उन्होंने हिन्दुओ , जैनियों ,बौद्ध , पारसी और मुसलमानों के बीच अपने उपदेश दिए | मन्दिरों ,मस्जिदों और तीर्थ स्थलों पर अपनी बात कही | वह जहा भी गये , खोखले धार्मिक अनुष्ठान और सामजिक कुरीतियों के खिलाफ बात की | विधवाओं की दयनीय स्थिति का भी विरोध किया| उन्होंने मूल धर्म ग्रंथो के अध्ययन के आधार पर धर्म के सही रूप में जानने और उसका पालन करने के लिए कहा | उन्होंने मुसलमानों को सच्चा मुसलमान और हिन्दुओ को सच्चा हिन्दू होने के लिए कहा |

02.  गुरु अंगद देवजी

गुरु अंगद देवजी का जन्म 1504 में हुआ था | उन्होंने अपने अनुयायियों के सामने स्वार्थ विहीन सेवा का आदर्श रखा और उन्हें भक्ति और समर्पण के लिए प्रेरित किया | उन्होंने बच्चो की शिक्षा में काफी रूचि ली | उनके लिए कई स्कूल खुलवाये ,जिनसे शिक्षा और साक्षरता की दर में काफी वृद्धि हुई | युवाओ के लिए उन्होंने माल अखाड़ा शुरू किया , जहा शारीरिक और आध्यात्मिक अभ्यास दोनों एक साथ कराया जाता था | उन्होंने भाई बालाजी  से गुरु नानक जी के जीवन के बारे में तथ्य एकत्र किया और उनकी जीवनी लिखी | उन्होंने 63 श्लोक स्वयं भी लिखे, जो गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित है | गुरुमुखी को प्रचलन में लाने और इसे सिखों के बीच लोकप्रिय बनाने का श्रेय भी उन्हें ही है |


03.  गुरु अमरदास साहिबजी

गुरु अमर दासजी का जन्म 1479 में हुआ था | उन्होंने जाति, प्रतिबन्ध, पूर्वाग्रहों और अस्पृश्यता के अभिशाप के विरुद्ध जमकर लोहा लिया | उन्होंने मुफ्त रसोई और गुरु- लंगर की परम्परा को ओर भी मजबूत बनाया | उन्होंने अपने शिष्यों , चाहे अमीर हो या गरीब , चाहे उच्च वर्ण में पैदा हुआ हो या छोटे वर्ण में सभी को एक साथ एक ही जगह बैठकर भोजन करने के लिए कहा | इस प्रकार उन्होंने लोगो के बीच सामाजिक समानता की स्थापना की | उन्होंने अपने अनुयायियो के लिए परम्परागत हिन्दू विवाह प्रथा की जगह एक अलग तरह के विवाह प्रथा की नींव रखी | उन्होंने सती प्रथा का विरोध किया , जिसमे शादीशुदा औरत को पति की मौत के बाद उसके साथ चिता में जलने को मजबूर किया जाता था |


04.  गुरु रामदास साहिबजी

गुरु रामदास जी का जन्म 1534 में हुआ था | उनका आरम्भिक नाम भाई जेठा था | उनका विवाह तीसरे गुरु अमरदास की पुत्री से हुआ था | उन्हें 1574 में 40 वर्ष की आयु में गुरुपद मिला | उन्होंने पवित्र शहर रामदासपुर की स्थापना की , जो बाद में अमृतसर के रूप में प्रसिद्ध हुआ | वहा दरबार साहिब (स्वर्ण मन्दिर ) का निर्माण शुरू किया गया | ईश्वर का दरवाजा हर समय हर किसी के लिए खुला है, यह दिखाने के लिए उन्होंने स्वर्ण मन्दिर का दरवाजा चारो तरफ से खुला रखा | उन्होंने सिखों को सामाजिक रूप में संगठित करने में महत्वपूर्ण योगदान किया | उनके समय सिख विवाह रीति को विस्तारित किया गया | उसमे कुछ नये रस्म और मन्त्रोच्चार जोड़े गये |

05.  गुरु अर्जुन देवजी

गुरु अर्जन देवजी  का जन्म 1563 में हुआ था | वे गुरु रामदास के तीसरे पुत्र थे | वे महान संत के साथ साथ ख्याति प्राप्त विद्वान भी थे | उन्होंने आदिग्रन्थ गुरु गन्थ साहिब को संकलित करवाया | इसमें पूर्व गुरुओ की वाणी के साथ साथ मुस्लिम संतो और निम्न जाति के कई ऐसे भक्त संतो की वाणी भी है जिन्हें कभी मन्दिरों में प्रवेश की अनुमति नही मिली | उन्होंने सुखमणि साहिब लिखा | उनके समय में दरबार साहिब (स्वर्ण मन्दिर) का निर्माण पूरा हुआ | अपने विद्रोही पुत्र की मदद के संदेह में मुगल सम्राट जहांगीर ने उनको यातना देकर हत्या करवा दी | इस प्रकार अर्जन देवजी धर्म की रक्षा के प्रयास में शहादत को प्राप्त करने वाले पहले सिख गुरु हो गये |

06.  गुरु हरगोबिन्द साहिबजी

गुरु हरगोबिन्द सिंह जी का जन्म 1595 में हुआ था | वे गुरु अर्जन देव के पुत्र थे | परम अहिंसा और शांतिवादी केवल बुराई प्रोत्साहित करेगा , इस मान्यता को आधार बनाकर गुरूजी ने मिरी-पिरी का सिद्धांत दिया | उसके बाद आध्यात्मिक के साथ साथ लौकिक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करने का भी उन्होंने निर्णय लिया | गुरूजी ने कहा कि कमजोर और दीन की रक्षा के लिए तलवार उठाना जरुरी हो गया है | उन्होंने संत सिपाही का रूप अपनाया और अपनी एक छोटी सेना भी रखनी शुरू की | उस समय केवल सम्राटो को ऊँचे मंच पर बैठने की अनुमति थी जिसे तख्त या सिंहासन कहा जाता था | 13 की उम्र में गुरु हरगोबिंदसिंहजी ने अपने लिए जमीन से दस फुट ऊँचा श्री अकाल तख्त साहिब बनवाया |


07.  गुरु हर राय साहिबजी

गुरु हर रायजी का जन्म 1630 में हुआ था | उन्होने अपना पूरा जीवन भक्ति और ध्यान में बिताया और गुरु नानक की शिक्षा का प्रचार करते रहे | व्यक्तिगत जीवन में वे अहिंसा को परम धर्म मानते थे लेकिन आत्मरक्षा के लिए शस्त्र उठाने  के भी  पक्षधर थे | अपने दादा गुरु हरगोबिन्द के संत सिपाही वाले सिद्धांत को भी उन्होंने अपनाए रखा  और अपने अनुयायीयो की सैन्य प्रवृतियों को बढ़ावा दिया | योद्धाओं को बहादुरी पुरुस्कारों से भी नवाजा करते थे | महान आध्यत्मिक पुरुष होने के साथ साथ उनकी राजनितिक समझ भी बेहतर थी | राष्ट्रनिर्माण के कार्यो में वे आजीवन लगे रहे | उन्होंने कीरतपुर में आयुर्वेदिक अस्पताल और अनुसन्धान केंद्र की भी स्थापना की थी |


08.  गुरु हर किशन साहिबजी
गुरु हर किशनजी का जन्म 1656 में हुआ था | उन्हें पांच साल की उम्र में ही गुरु बना दिया गया था | गुरूजी ने अपने ज्ञान और आध्यात्मिक शक्तियों से कई समकालीन ब्राह्मण विद्वानों और पंडितो को भी चकित कर दिया था| अपनी जीवन शैली और कार्यो से उन्होंने अपने अनुयायीयो को सेवा ,शुद्धता और सच्चाई का प्रतीक बनने के लिए प्रेरित किया | दिल्ली में महामारी से त्रस्त लोगो की गुरूजी ने बिना धर्म , जाति या पन्थ देखे, सेवा की | उस दौरान उन्होंने अपना जीवन भी दे दिया | स्थानीय मुस्लिम आबादी गुरु साहिब की विशुद्द मानवीय भावना से किये कार्यो से इतनी प्रभावित थे कि उन्हें बाल पीर (बच्चे नबी) उपनाम दिया गया | आज भी मान्यता है कि जो कोई सच्चे दिल से गुरु किशन जी का आह्वान करता है उसके जीवन की सारी कठिनाईया दूर हो जाती है |

09.  गुरु तेगबहादुर साहिबजी

गुरु तेगबहादुर का जन्म 1621 में हुआ था | उन्होंने आनन्दपुर शहर की स्थापना की | गुरु तेगबहादुरजी की पूजा और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में दृढ़ विश्वास था | प्रचार के लिए बंगाल और असम जाते समय वे पटना में भी रुके थे और यही अपने परिवार को छोड़ दिया था | इसके कारण उनके पुत्र और दसवे सिख गुरु गोबिंद सिंहजी का जन्म पटना में ही हुआ था | गूर तेगबहादुर जी ने हिन्दू धर्म और इसके तिलक एवं जनेऊ की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए | उन्होंने औरंगजेब के जुल्म सहे लेकिन इस्लाम धर्म स्वीकार नही किया | अन्त्तत: प्रतिकार के क्रम में वे शहीद हो गये | गुरूजी का निर्भय आचरण और बलिदान धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था जो मानवीय इतिहास में दुर्लभ है |

10.  गुरु गोबिंद सिंहजी

सिक्खों के दसवे गुरु गोबिंद सिंह,  योद्धा , कवि और विचारक रहे|  उन्होंने मुगल बादशाह के साथ कई युद्ध किये और ज्यादातर में में विजय हासिल की | उनके पिता सिक्ख धर्म के नौवे गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी देवी थी | उन्होंने 1699 को बैसाखी वाले दिन आनन्दपुर साहिब में एक बड़ी सभा का आयोजन कर खालसा पंथ की स्थापना की थी |

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