लोक कल्याण के लिए आत्म-त्याग करने वालो में महर्षि दधिची का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है | इनकी माता का नाम शान्ति और पिता का नाम अर्थवा ऋषि था | ये तपस्या और पवित्रता की प्रतिमूर्ति थे | अटूट शिव भक्ति और वैराग्य में इनको जन्म से ही निष्ठा थी |
एक बार महर्षि दधिची बड़ी ही कठोर तपस्या कर रहे थे | इनकी अपूर्व तपस्या के तेज से तीनो लोक आलोकित हो गये और इंद्र का सिंहासन हिलने लगा | इंद्र को लगा कि महर्षि दधिची अपनी कठोर तपस्या से इंद्र-पद छीनना चाहते है, इसलिए उन्होंने महर्षि दधिची की तपस्या को खंडित करने के उद्देश्य से परम रूपवती अल्म्भुषा अप्सरा के साथ कामदेव को भेजा | अल्म्भुषा और कामदेव के अथक प्रयत्न के बाद भी महर्षि अविचल रहे और अंत में विफल मनोरथ होकर दोनों इंद्र के पास लौट गये |
कामदेव और अप्सरा के निराश होकर लौटने के बाद इंद्र ने महर्षि की हत्या का निश्चय किया और देव सेना को लेकर महर्षि दधिची के आश्रम पर पहुचे | वहा पहुचकर देवताओ ने शांत और समाधिस्थ महर्षि दधिची पर अपने कठोर अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करना शुरू कर दिया | देवताओ के द्वारा चलाए गये अस्त्र-शस्त्र महर्षि की तपस्या के अभेद्य दुर्ग को ना भेद सके और महर्षि अविचल समाधिस्थ बैठे रहे | इंद्र के अस्त्र-शस्त्र भी उनके सामने व्यर्थ हो गये | हारकर देवराज स्वर्ग लौट आये |
एक बार देवराज इंद्र अपनी सभा में बैठे थे | उसी समय देव गुरु बृहस्पती आये | अहंकार-वश गुरु बृहस्पती के सम्मान में इंद्र उठ कर खड़े ही नही हुए | बृहस्पती ने इसे अपमान समझा और देवताओं को छोडकर अन्यत्र चले गये | देवताओ को विश्वरूप को अपना पुरोहित बनाकर काम चलाना पड़ा किन्तु विश्व रूप कभी कभी देवताओ से छिपा कर असुरो को भी यज्ञ भाग दे दिया करते थे | इंद्र ने उस पर कुपित होकर उसका सिर काट लिया |
विश्वरूप त्वष्ठा, ऋषि का पुत्र था | उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के उद्देश्य से महाबली वृतासुर को उत्पन्न किया | वृतासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोडकर देवताओ के साथ मारे मारे फिरने लगे | ब्रह्मा जी की सलाह से देवराज इंद्र महर्षि दधिची के पास उनकी हड्डिया मांगने के लिए गये | उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए कहा “प्रभो ! त्रैलोक्य की मंगल कामना हेतु आप अपनी हड्डियां, हमे दान दे दीजिये “|
महर्षि दधिची ने कहा “देवराज ! यद्यपि अपना शरीर सबको प्रिय होता है किन्तु लोकहित के लिए मैं तुम्हे अपना शरीर प्रदान करता हूँ|" महर्षि दधिची की हड्डियों से व्रज का निर्माण हुआ जिससे वृतासुर मारा गया | इस प्रकार एक परोपकारी ऋषि के अपूर्व त्याग से देवराज इंद्र बच गये और तीनो लोक सुखी हो गये | अपने अपकारी शत्रु के भी हित के लिए सर्वस्व त्याग करने वाले महर्षि दधिची जैसा उदाहरण संसार में अन्यत्र मिलना कठिन है |
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