असत्य वचन का परिणाम.




सतयुग में एक बार देवताओ ने महर्षियो से पूछा, “श्रुति कहती हैं कि यज्ञ में ‘अजबली ‘ होनी चाहिए| ‘अज’ यानि ‘बकरा,’ इसलिए उसकी बली आप लोग क्यों नहीं देते ?”

इस पर महर्षियो ने कहा, “ देवताओ को, मनुष्यों की बुद्धि  इस प्रकार भ्रम में नहीं डालना चाहिए| वास्तव में बीज का नाम ही ‘अज’ यानि अन्न से यज्ञ करने का निर्देश हैं| इस कारण यज्ञ में पशुबध करना’ सज्जनों का काम नहीं हैं|”

बात देवताओ को जँची नहीं| उन्होंने इस तर्क को नहीं माना | उसी समय आकाश-मार्ग से राजा उपरिचर जा रहे थे| उन्हें देख, देवता और महर्षि मध्यस्थ बनाने के इरादे से उनके पास गये| उन लीगो ने सारा हाल सुनाया और पूछा कि यज्ञ में पशुबलि होनी चाहिए या नहीं?

राजा उपरिचर ने सोचा कि देवताओ को प्रसन्न करने का यह अवसर अच्छा हैं, अत: उन्होंने निर्णय दे दिया, “देवताओ का कथन ठीक हैं, यज्ञ में पशुबलि होनी चाहिये|”

यह गलत निर्णय सुनते ही महर्षियो को क्रोध आ गया| उन्होंने कहा, “तूने पक्षपात करके असत्य निर्णय दिया हैं, इस कारण हम शाप देते हैं कि तू देवलोक में कभी भी न जा सकेगा| पृथ्वी में भी, तेरे लिये कोई स्थान नहीं हैं, तू अब पृथ्वी में धँस जायेगा|

उपरिचर उसी समय आकाश से गिरने लगे| इससे देवताओ को दया आयी| वे बोले, “ महाराज! महर्षियो के वचनों को मिथ्या करने की शक्ति हममे नहीं हैं| महर्षियो का पक्ष ही सत्य हुआ| हमसे अनुराग होने के कारण ही आपने हमारा पक्ष लिया था, इसलिए हम आपको वरदान देते हैं कि जब तक आप भू-गर्भ में रहेंगे, यज्ञ में ब्राह्मणों द्वारा जो घी की धारा डाली जाएगी, वह आपको प्राप्त होगी और आपको भूख- प्यास का कष्ट न होगा|

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